Book Title: Prakrit Sahitya Ka Itihas
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 17
________________ ३६४ ३६६ ३६७ मंत्रशास्त्र my वैराग्यशतक ३४३ | आगम साहित्य में कथायें ३५५ वैराग्यरसायनप्रकरण ३४४ आगमों की व्याख्याओं में कथाएं ३५८ व्यवहारशुद्धिप्रकाश कथाओं के रूप ३६० परिपाटीचतुर्दशकम् जैन लेखकों का नूतन दृष्टिकोण ३६३ (च) प्रकरण-ग्रन्थ ३४५-३४६ प्रेमाख्यान जीवविचारप्रकरण विविध वर्णन नवतत्त्वगाथाप्रकरण सामान्य जीवन का चित्रण दण्डकप्रकरण ३६८ लघुसंघयणी जैन मान्यताएं. ३७० बृहत्संग्रहणी कथा-ग्रन्थों की भाषा ३७२ बृहत्क्षेत्रसमास प्राकृत कथा-साहित्य का नव्यबृहत्क्षेत्रसमास उत्कर्षकाल ३७३ लघुक्षेत्रसमास संस्कृत में कथा-साहित्य ३७४ श्रीचन्द्रीयसंग्रहणी अपभ्रंशकाल ३७५ समयसारप्रकरण तरंगवइकहा ३७६ षोडशकप्रकरण तरंगलोला ३७७ पंचाशकप्रकरण वसुदेवहिण्डी नवपदप्रकरण समराइचकहा . ३९४ सप्ततिशतस्थानप्रकरण धुत्तक्खाण -४१२ अन्य प्रकरण-ग्रन्थ कुवलयमाला ४१६ (छ) सामाचारी मूलशुद्धिप्रकरण (ज) विधिविधान ३५१-३५२ कथाकोषप्रकरण विधिमार्गप्रपा ३५१ निर्वाणलीलावतीकथा (झ) तीर्थसम्बन्धी ३५३-३५५ णाणपंचमीकहा विविधतीर्थकल्प ३५३ श्राख्यानमणिकोश ४४४ (ब) पट्टावलियां ३५५ कहारयणकोस ४४८ (ट) प्रबन्ध कालिकायरियकहाणय छठा अध्याय नम्मयासुन्दरीकहा प्राकृत कथा-साहित्य ( ईसवी सन् | कुमारवालपडिबोह ४६३ की चौथी शताब्दी से १७वीं पाइअकहासंगह ४७२ शताब्दी तक) ३५६-५२४ मलयसुंदरीकहा कथाओं का महत्व ३५६ । जिनदत्ताख्यान २ प्रा० भू० ३५० اس پا 6 ४५५ ४५९ ४७६

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