Book Title: Prakaran Samucchay Author(s): Ratnasinhsuri Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरण समुच्चयः गणित प्रकरणं मुहपुत्तिा नमुकारमालिया विअरणाइरूवाए । नवि पूषणाइ भिक्खं गवेसिव्वति तइअमिणं ॥२४॥श्रावस्सगुवासगदसपण्हावागरणपमुहसत्थेसु । वत्थंचलविरहेणं मुहपुत्ती ठाविआ एवं ॥ २५ ।। इअ समयावविहहेऊजुत्तीहि संगय बुहजणाणं। अवहत्थिन मुहपुत्तुं जमन्नहा के उवि पलवंति ।। २६ ॥तं माहप्पं मोहस्स विलसि अहव अभिनिवेसस्स । दीहरसंसारफलाणमहब कम्माण परिणामो ॥२७॥ ता भो भव्वा! | चइऊण कुग्गहं अणुसरह सम्मग्गं । सिरिवद्धमारणसूरीहिं संसि जइ महह सुख्खं ॥ २८॥ ॥ इति मुखवत्रिकामकरणम् ।। ॥अथ जीवादिगणितसंग्रहगाथाः॥ ३ जोयणसहस्सनवर्ग सत्तेव सया हवंति अडयाला । बारस य कला सकला दाहिणभरहद्धजीवाओ॥१। दस चेव सहस्साई जीवा सत्तय सयाई वीसाई । बारस य कला ऊरणा वेयगिरिस्त विनेया ।।२।। चउदस य सहस्साई सयाई चत्तारि एगसयराई। भरहदुत्तरजीवा छञ्च कला आणया किंचि ॥ ३ ॥ चउवीस सहस्साई नव य सए जोयणाण बत्तीसे । चुल्लहिमवंत जीवा आयामेणं कलद्धं च ॥४॥ सत्तत्तीससहस्सा छच्च सया जोयणाण चउसयरा । हेमवयवासजीवा किंचूणा सोलस कला य ॥५॥ तेवन्न सहस्साई नव य सया जोयणाण इगतीसा। जीवा य महाहिमवे अद्धकला छक्कलाओ य ॥ ६ ॥ एगुत्तरा नवसया तेवत्तरिमेव जोयणसहस्सा । जीवा सत्तरस कला अद्धकला चेव हरिवासे ॥ ७ ॥ चउणवइ सहस्साई छप्पन्न उहियं सयं कला दो य । जीवा निसहस्से सा लक्खं जीवा विदेहद्धे ॥८॥ ॥ इति जीवासंग्रहगाथा ॥ ॥३॥ For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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