Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ Shri Mahavir lain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरण समुचयः संज्ञाकुलब मुखवविध प्रकरणे ॥ अर्हद्भ्यो नमः ॥ अथ श्रीप्रकरणसमुच्चयः ॥ अथ संज्ञाकुलकम् ।। १ रुक्खाण जलाहारो १ संकोइणिया भएण संकुचिया २। नियतंतुएहिं वेढई वल्ली रुक्खे परिगहे य ३ ॥ १ ॥ इत्थियपरिरंभेशं कुरुवगतरुणो फलंति मेहूणे ४ । तह कोकनस्स कंदो हुंकारे मुयइ कोहेणं ५॥२॥ माणे झरइ रुयंती ६ छायइ वल्ली फलाई मायाए । लोभे बिल्जपलासा खिवंति मूलं निहाणुवरि ८॥३॥ रयणीए संकोओ कमलाणं होइ लोकसन्नाए । ओहे चइत्सु मग्गं चढंति रुक्खेसु वल्लीश्रो १०॥४॥ ए दस थावरसन्ना सुह १ दुह २ मोहाइ ३ तह दुगुंछा ४ य ॥ सोगे ५ धम्मो ६ एए सोलस सन्ना तसजिएसुं॥५॥ ॥ इति संज्ञापकरणम् ।। ॥ अथ मुखवत्रिकास्थापनप्रकरणम् ॥२ मोहतिमिरोहसूर नमिउं वीरं सुआणुसारेणं । साहेमि अमुहपत्ति, सडाणमणुग्गहट्ठाए ॥१॥ इह केइ समयतत्तं अमुणता सावयाण मुहपत्ति । पडिसेहंति जईणं उषगरणमिणंतिकाऊणं ।।२।। एवं च चीवराणं जुज्झति न सावयाण परिहेउं (हाणं)। जम्हा ताणिवि मज्झिमजिणाण उवग| रणभूत्राणि ॥३॥जं च जईवि फुसंतो पाए मुहणतएण पच्छित्तं । पावइ किं पुण सट्टो तंपिवि निअकप्पणामित्तं ॥ ४ ॥ भिन्नविसर्य खु सिं Aॐॐॐॐॐ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 133