Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie प्रकरण समुच्चयः मुखवत्रिक प्रकरणे SOCTOCALCANOAAAKALA पच्छित् भणिअमागमे इहरा । दव्वथए वर्सेतो जइब्व दूसिज्ज सोवि ।। ५ अह एगमडिएणं उत्तरसंगेण वसहिमाईसु । पाएण विसइ सदो तम्हा वत्थंचलेणेव ॥६ ।। सामाइगाइ एवंपि संभवइ इमंपि आगमविरुद्धं । आवस्सयचुनीए जं सामाइअविही एवं ॥७॥ सामाइअं करतो सट्टो कुंडलकिरीडमणिबद्धं । तंबोलपुष्फपंगुरणमाइ वोसिरइ सव्वंपि ॥ ८॥ सुब्बइ अ सत्तमंगे उवासगदसासु कुंडकोलिओ। मुत्तण उत्तरिज्जं पडिवन्नो पोसहवयंपि ॥ ६॥ कंपिल्ले सावय कुंडकोलिओ निषअसोगवणिआए । गंतुं ठवइ सिलाए नाममुदंतरिज्जं च ॥१०॥ वीरवरस्स भगवो उवसंपज्जित धम्मपन्नतिं । विहरइ अ जाव सामी समोसढो तत्थ तं समयं ॥ ११ ॥ लट्ठो अ इमीसे कहाइ सो हटुं तुट्टओ हिअए । सेअं खलु महसामी वंदित्ता तह नमंसित्तुं ।।१२ ॥ तत्तो अ पडिनिअत्तस्स पोसह पारिउंति पेहित्ता । जह नाम कामदेवो वच्चइ तह पज्जुवासइ अ ।। १३ ॥ जंपिश्र समए भणि कडसामइओ गुरूण पासंमि । रथहरणमह निसिज्जं मग्गइ सो अह घरंमि ॥ १४ ॥ तो तस्स उवग्गहिअं रयहरणं तस्स असइ पुत्तस्स । अंतेणंति तहिंपिश्र पुत्तं मुहपत्तिा नेा ॥ १५॥ वासत्ताणावरिश्रा निकारणि ठंति कज्जि जयणाए। हत्थत्थंगुलि सन्ना पुतंतरिआ व भासंति ॥१६।। इस आवस्सगगाहामज्झे पढिअस्स पुत्तसहस्स । मुहपत्तिअस्स अत्यो चुन्नीए वन्निो जम्हा ॥ १७ ॥ कण्हस्सट्ठारसमणिसहस्सवंदणगवइअरेवि तहिं । भणिमिमं चित्र सामी समोसढ़ो निग्गो राया ।। १८ ॥ सब्वेवि वंदिया जाव बारसावत्तवंदणणंति । किंबहुणा पंचविहोभिगमोऽवि न भासिओ तत्थ ॥१९॥ तह पण्हावागरणे दसमंगे सावगाण मुहपुत्ती । पयडकिचन ठाणतिगे बरिणज्जइ तत्थिमं पढमं ॥ २०॥ दवकिअं भावकिअं दव्वकिअं पुत्तिाइ इअ सुत्ते । मुहपुत्तीपाइदब्वेण सावगा किणइ साहुत्ति ।। २१ ॥ अचिअत्तघरे गमणं अचिअत्तघरे अ भत्तपाणं च । वज्जेअव्वं सिज्जा संथारग पीढ़ फलगं च ।। २२ ।। वत्थं पत्तं कंबल मुहपुत्तिअमाइ इअ भवे बीअं । नवि वंदणाइ नवि पूअण्णाइ नवि माणणाइन्ति ॥२३॥ SCARRANGAL ॥२॥ For Private and Personal Use Only

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