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पता लग गया। फिर भी कालसंगर प्रद्युम्न से युद्ध करने के लिए आगे बढ़ा इतने में ही नारद ऋषि महां आगये । उन्होंने जो कुछ कहा उससे सारी स्थिति बदल गई और युद्ध बन्द हो गया। इससे कालसंवर को बड़ी प्रसन्नता हुई और प्रद्युम्न ने भी सब कुमारों को बन्धन मुक्त कर दिया |
फालसंबर से आज्ञा लेकर प्रद्युम्न ने नारद ऋषि के साथ द्वारका नगरी के लिए विमान द्वारा प्रस्थान किया। मार्ग में हस्तिनापुर पड़ा । दुर्योधन की कन्या उदधि कुमारी का सत्यभामा के पुत्र भानुकुमार के साथ विवाह होने के लिए अभिषेक हो रहा था। नारद द्वारा यह जानकर कि उदधि कुमारी प्रद्युम्न की मांग है वह भील का भेष धारण कर उन लोगों में मिल गया और उदधि कुमारी को बलपूर्वक छीन कर ले गया । प्रद्युम्न उस कन्या को विमान में बैठा कर द्वारका की ओर चल पड़ा। द्वारका पहुंच कर नारद ने वहां के विभिन्न महलों का उसे परिचय दिया ।
जब चतुरंगिणी सेना के साथ आते हुए भानुकुमार को देखा तब प्रद्युम्न विमान से उतरा और उसने एक बूढ़े चित्र का भेष बना लिया। एक मायामय चंचल घोड़ा ने साथ ले लिया। घो को भएका मन ललचाया। उसने विप्र से उसका मूल्य पूछा। विप्र ने घोड़े का इतना मूल्य मांगा जो भानु को उचित नहीं लगा । भानुकुमार विप्र के कहने पर बोड़े पर चढ़ा और घोड़े को न संभाल सकने के कारण गिर पड़ा जिसे देखकर सारे लोग हंसने लगे। जब बलदेवजी ने विप्र भेषधारी प्रद्युम्न से ही घोड़े पर चढ़ने को कहा तो वह बहुत भारी बन गया और घोड़े पर चढ़ाने के लिए प्रार्थना करने लगा । दस बीस योद्धा भी उसे उठाकर घोड़े पर न चढ़ा सके तो भानुकुमार स्वयं उसे उठाने आगे आया । तत्र बद्द भानु के गले पर पैर रखकर चढ़ गया और आकाश में उड़ गया ।
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पुनः प्रद्युम्न ने अपना रूप बदलकर दो मायामय घोड़े बनाये । उन मायामय घोड़ों को उसने राजा के उद्यान में छोड़ दिया। घोड़ों ने राजा के सारे बधान को चौपट कर दिया। इसके पश्चात् उसने दो बन्दर उत्पन्न किये जिन्होंने सत्यभामा की बाड़ों को न भ्रष्ट कर दिया। जब भानुकुमार बाड़ी मैं आया तो मायामय मच्छर उत्पन्न कर उसे बाड़ी से भगा दिया। इतने में ही प्रद्युम्न को मार्ग में आती हुई कुछ स्त्रियां मिलीं, जो मंगल गीत गा रही थीं । उनको भी उसने रथ में घोड़े और ऊंट जोड़ कर रास्ते में गिरा दिया । इसके बाद वह एक ब्राह्मण का रूप धारण कर लाठी टेकता हुआ सत्यभामा की बावड़ी पर गया और कमंडलु में जल मांगने लगा । पानी भरने से मना