Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
View full book text
________________
की गुफाओं के तथा उनमें उत्कीर्ण अभिलेखों और पार्श्वनाथ तीर्थंकर की प्रतिमाओं के रूप में उपलब्ध हैं। मूर्तिलेखों में मूर्ति के निर्माणकाल, प्रतिष्ठाता आचार्य व उनकी परम्परा में उनसे पूर्वी आचार्यों के नाम, संघ, गण, गच्छ तथा मूर्तिदाता का नाम एवं कभी कभी राजा का नाम जिसके राज्यकाल में मूर्ति की प्रतिष्ठा हुई, आदि की जानकारी मिलती है। मूर्ति लेखों की यह जानकारी ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होती है। इसका महत्त्व इसलिये भी अधिक होता है कि अधिकतर यह तिथिपरक होती है।
मूर्तियों से मूर्तिकला सम्बन्धी जानकारी तथा जैनधर्म में मूर्तिकला से सम्बन्धित लक्षणों के आधार पर जैन मूर्तिकला के विकास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। विभिन्न आसनों में प्राप्त जैन प्रतिमाएं कला की अमूल्य धरोहर है। अनके कलात्मक एवं सुन्दर जैन प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं जो अपनी विशेषता रखती है। इसी प्रकार जैन मंदिरों में स्थापत्यकला के वैभव का ज्ञान होता है। जैन मंदिरों के निर्माण की योजना किस प्रकार की है, गर्भगृह, शिखर, सभामण्डप आदि किस प्रकार से बने हैं आदि बातों का पता जैन मंदिरों को देखने से ही चलता है। इसके अतिरिक्त मालवा के अनेक जैन मंदिर अपनी कला के लिये भी प्रसिद्ध हैं।
इस शोध-प्रबन्ध में उपर्युक्त विधि से प्राप्त सामग्री का यथा-सम्भव उपयोग किया गया है।
संदर्भ सूची: भारतीय चित्रकला, पृष्ठ 135-36
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org