Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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व्यवस्थापक श्री मिश्रीलाल टोंग्या है जिन्होंने पूर्ण रूचि के साथ ग्रन्थों का । अवलोकन करवाया। साथ ही आप ग्रन्थों को सुरक्षित रखने का प्रयास भी करते हैं। कुछ ग्रन्थों की प्रशस्तियां महत्त्व की है। कुछ ग्रन्थ 17वीं शताब्दी के लिखे हुए हैं। एक ग्रन्थ "ज्ञानार्णव" सं.1679 भाद्र शुक्ल 14 रविवार को नागपुर में लिखा गया था। यह ग्रन्थ नागपुर से बड़नगर किस प्रकार आया इसकी कोई जानकारी इस शास्त्र भण्डार में उपलब्ध नहीं है न ही यह जानकारी है कि यह ग्रन्थ किस प्रकार भण्डार को उपलब्ध हुआ?
. (स) अजितनाथ का श्वेताम्बर जैन मंदिर बड़नगर- यहां भी एक शास्त्र भण्डार होने की सूचना है किन्तु यहां के व्यवस्थापक महादेय के पास चार पांच बार जाकर विनम्र निवेदन करने के उपरांत भी वे अपने घर से चाबी लेकर मंदिर तक नहीं आये जबकि घर से मंदिर 1 फलांग से भी कम दूरी पर स्थित है। अतः पर्याप्त प्रयत्न करने के उपरांत भी मैं यह शास्त्र भण्डार देखने से वंचित रहा।
____(2) मन्दसौर का शास्त्र भण्डार : मन्दसौर के जैन मंदिरों में से मुझे जो जानकारी दी गई उसके अनुसार केवल श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर जनकपुरा मन्दसौर में श्री सरस्वती शास्त्र भण्डार जूना मंदिर है इस शास्त्र भण्डार में लगभग 70 हस्तलिखित ग्रन्थ हैं जो व्यवस्थित रूप से रखे हुए हैं तथा इन ग्रन्थों का एक व्यवस्थित रजिस्टर भी है। इस कारण शास्त्र भण्डार के कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ इस प्रकार हैं:
(1) महिपाल चरित : यह ग्रन्थ पूर्ण है। प्रशस्ति के संवत् आदि का उल्लेख नहीं है। ग्रन्थ अच्छी स्थिति में है।
(2) दशलक्षण व्रत विधान : संवत् 1804 माघ सुदी 3 का लिखा हुआ है। अन्य कोई महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रशस्ति में नहीं दी गई है।
(3) देवपूजा : यह ग्रन्थ सं.1926 में चन्देरी में गंगाप्रसाद ब्राह्मण ने लिपिबद्ध किया था। चन्देरी से मन्दसौर यह ग्रन्थ किस प्रकार आया और फिर इस शास्त्र भण्डार को किसने भेंट किया आदि जानकारी उपलब्ध नहीं है।
(4) पद्मपुराण वचनिका : यह ग्रन्थ चतुःसंघ (श्रावक, श्राविका मुनि, आर्यका) आदि के मंगल के लिये संवत् 1899 में मिति माह ज्येष्ठ शुक्ल 11 शनिवार को लिपिबद्ध किया गया। इसके लिपिकर्ता खरतरगच्छ के भट्टारक श्री खूबचन्दजी थे जो ग्राम मन्दसौर में बड़ी होली में निवास करते थे। जनकूपुरा मंदिर के लिये जिन्होंने इस ग्रन्थ की लिपि की। इस ग्रन्थ भण्डार में एक ग्रन्थ जयपुर का लिखा हुआ भी है।
मैं यहां के शास्त्र भण्डार का अवलोकन कर ही रहा था कि एक कोई
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