Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 164
________________ उसी • सलखणपुर में मल्ह के पुत्र नागदेव रहते थे, जो निरन्तर पुर्ण्याजन करते थे। वहीं संयमी गुणी और सुशील रामचन्द्र रहते थे। इससे स्पष्ट है कि उस समय उस नगर में अच्छे धर्मात्मा लोगों का निवास था। वहीं पर खण्डेलवाल कुलभूषण विषयविरक्त भव्यजनबांधव, केशव के पुत्र इन्दुक या इन्द्रचन्द्र रहते थे। जो जिनधर्म के धारक थे और जिनभक्ति में तत्पर तथा संसार से उदासीन रहते थे। उन्होंने नेमिजिन की स्तुति कर भव्य नागदेव को शुभाषीश दी। तब नागदेव ने कहा कि राज्य परिकर से क्या, मनहारी हय गज से क्या, जबकि माया मद, पुत्र, कलत्र, मित्र सभी इन्द्रधनुष के समान अनित्य है। निर्मल चित्त भव्यों के . मित्र नागदेव ने कहा, हे! दामोदर कवि ऐसा काम कीजिये जिससे धर्म में न हानि हो। मुझे 'नैमिजिनचरित्र बनाकर दीजिये, जिससे गंभीर भव से आज तरजाऊं और मेरा जन्म सफल हो। तब कवि ने नागदेव के अनरोध से नेमिजिन का चरित्र देवपाल के राज्य में बनाया । देवपाल मालवे का पारमारवंशी राजा था और महाकुमार हरिशचन्द्र वर्मा का जो छोटी शाखा के वेराधर थे, द्वितीय पुत्र था। क्योंकि अर्जुनवर्मा के कोई सन्तान नहीं थी। अतः उस गद्दी का अधिकार इन्हें ही प्राप्त हुआ था। इसका अपर नाम साहसमल्ल था। इसके समय के 3 शिलालेख और एक दानपत्र मिला है। एक विक्रम संवत् 1272 सन् 1218 का हरसोड़ा गांव से और दो लेख ग्वालियर राज्य से मिले हैं जिनमें एक विक्रम संवत् 1286 और दूसरा वि.सं. 1289 का है। मांधाता से वि.सं. 1292 भादो सुदि 15 सन् 1235 का 29 अगस्त का दानपत्र भी मिला है। यह उसका अंतिम दानपत्र जान पड़ता है, क्योंकि जब सं. 1,292 सन् 1235 में आशाधर ने त्रिषष्टि स्मृतिशास्त्र बनाया उस समय उनके पुत्र जैतुंगिदेव का राज था। संभव है उसी वर्ष देवपाल की किसी समय मृत्यु हुई हो और इसलिये जब आशाधर ने सागरधर्मामृत सटीक वि. सं. 1296 में नलकच्छपुर के नेमिनाथ चैत्यालय में बनाया, उसमें राजा का कोई उल्लेख नहीं किया, क्योंकि उस समय जैतुंग़िदेव का राज था । कवि दामोदर ने सलखणपुर के रहते हुए पृथ्वी पर के पुत्र रामचन्द्र के उपदेश एवं आदेश से तथा मल्ह पुत्र नागदेव के अनुरोध से नेमिनाथ चरित्र वि.सं. 1287 में परमारवंशी राजा देवपाल के राज में बनाकर समाप्त किया था। कवि का वंश मेत्तम था और पिता का नाम कविमाल्हण था, उसने दल्ह का चरित्र बनाया था। कवि के ज्येष्ठ भ्राता का नाम जिनदेव था। उस समय उक्त नगर में मुनि कमलभद्र भी विद्यमान थे। मालवा के प्रमुख जैनाचार्यों के अध्ययन से हम अन्त में इस निष्कर्ष पर Jain Education International For Personal & Private Use Only 151 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178