Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala

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Page 169
________________ लेख बिना तिथि के भी प्राप्त हुए हैं। जैन मूर्तियां मूर्तिकला की दृष्टि से अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। जैन चित्रकला में जैनधर्म से सम्बन्धित मान्यताओं का चित्रांकन किया जाता है। साथ ही तीर्थंकरों के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं का भी अंकन किया जाता है जिससे हमें बहुमूल्य जानकारी मिल जाती है। इसके अतिरिक्त जैन चित्रकला के उपकरण, उपयोग में आने वाले रंग आदि की तो जानकारी मिलती ही है किन्तु जैन चित्रकला ने कला जगत को एक नई शैली दी है जिसे विद्वानों ने अपभ्रंश शैली का नाम दिया है। मालवा में जैन चित्रकला के नमूने जैन मंदिरों में तो देखने को मिलते ही हैं किन्तु जैन ग्रन्थों पर भी सन्दर चित्रांकन देखने को मिलता है। ग्रन्थ के साथ जो चित्रांकन मिलता है वह ग्रन्थ की कथा या विवरण पर आधृत होता है। इस प्रकार का चित्रांकन अपने समय की कलागत विशेषताओं को प्रकट करता है। अस्तु जैनकला जो कि भारतीयकला का ही प्रसार है, महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है। ____ मालवा के जैन तीर्थों का अपना इतिहास है। जहां-जहां भी जैनतीर्थ है वहां-वहां जैनधर्मावलम्बियों ने उनके महत्त्व को और भी बढ़ा दिया है। जो जैनतीर्थ प्राचीन है, उनकी प्राचीनता जीर्णोद्धार के परिणामस्वरूप नष्ट हो गई है। अब उनकी प्राचीनता विषयक प्रमाण-पुस्तकों तक ही सीमित रह गये हैं। मालवा में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों ही सम्प्रदायों के तीर्थ मिलते हैं, किन्तु श्वेताम्बर मतावलम्बियों में तीर्थों का बाहुल्य यहां अधिक है यद्यपि अवशेषों की उपलब्धि दिगम्बर सम्प्रदाय के प्राबल्य को प्रमाणित करती है। जैनवाड्मय की दृष्टि से मालवा पर्याप्त महत्त्व रखता है। यह वहीं स्थान जहां आर्यरक्षितसूरि ने जनसामान्य की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए आंगम साहित्य को चार भागों में विभक्त किया था। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने कल्याण मंदिर स्तोत्र के पाठ से तत्कालीन राजा को चमत्कार बताकर अचंभित कर दिया था। जैन विद्वानों ने दर्शन साहित्य, कथा साहित्य, काव्य और महाकाव्य, अलंकार, व्याकरण, ज्योतिष आयुर्वेद आदि विषयों से सम्बन्धित जैनक ग्रन्थों की रचना कर साहित्य को समृद्ध किया। जैनाचार्यों ने अपने प्रभाव से जैन मंदिरों और भट्टारकों की गादियों वाले स्थानों में शास्त्र भण्डारों की स्थापना करवा कर एक अद्भुत परम्परा को जन्म दिया। यदि किसी को पुस्तकालय का आदि स्वरूप देखना हो तो वह प्राचीनतम जैनशास्त्र भण्डारों का अध्ययन करें। ये प्राचीन शास्त्र भण्डार पुस्तकालय के प्रतीक हैं। साथ ही उनसे यह लाभ हुआ कि एक ही स्थान पर समस्त प्रकार के | 156 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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