Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
View full book text
________________
को दे दिये जाते हैं। कुछ व्यक्ति ग्रन्थों के महत्त्व को समझकर अपने साथ सुरक्षित रखकर ले जाते हैं और ग्रन्थ भण्डारों को भेंट कर देते हैं जिससे कि वे सुरक्षित रह सके। यही कारण है कि अनेक दूरस्थ स्थानों पर लिखे हुए ग्रन्थ भी भण्डारों में मिलते हैं किन्तु उनके प्राप्त होने का कोई विवरण नहीं मिलता।
जहां ग्रन्थ भण्डारों में ग्रन्थों को सम्हाल कर रखने का प्रश्न है, मुझे जो भी ग्रन्थ भण्डार देखने को मिलते हैं, उनमें ग्रन्थों को सुरक्षित रखने के लिये निम्नानुसार व्यवस्था देखने को मिली:
(1) ग्रन्थों की प्रतिलिपि करना : कुछ स्थानों पर ऐसा भी उदाहरण मिला कि यदि कोई ग्रन्थ अत्यधिक जीर्ण-शीर्ण हो रहा है और उसको सम्हालकर सुरक्षित रख पाना सम्भव नहीं हो पा रहा है तो मंदिरों के शास्त्र भण्डारों में ऐसे शास्त्रों की प्रतिलिपि करवा ली गयी है। मन्दसौर के पार्श्वनाथ दिगम्बर, जूना मंदिर, जनकपुरा के सरस्वती शास्त्र भण्डार में एक पंडितजी थे जो ग्रन्थों की प्रतिलिपि का कार्य करते थे, वे अब नहीं है। इसी प्रकार अन्य स्थानों पर के शास्त्र भण्डारों अथवा रुचि रखने वाले व्यक्ति अपनी रुचि के अनुसार ग्रन्थों की प्रतिलिपि बनाने का कार्य करते थे।
. (2) ग्रन्थों को रखने का स्थान व ढंग : सामान्यतः ग्रन्थों को लकड़ी अथवा लोहे की अलमारियों में सुरक्षित रखा जाता है। कहीं-कहीं लकड़ी अथवा लोहे की पेटी में भी ग्रन्थ रखे जाते हैं। ग्रन्थों को दो पुट्ठों के टुकड़े अथवा पटियों के मध्य कागज में लपेटकर डोरी से बांध दिया जाता है, उसके उपरांत एक कपड़े में लपेटकर बांध दिया जाता है। जब ग्रन्थों को अलमारी में रखना होता है तब या तो अलग-अलग ग्रन्थ जमा कर रख दिये जाते हैं अथवा एक बड़े कपड़े में 1020 ग्रन्थों को बांधकर गटर के रूप में रख देते हैं। इस प्रकार केवल हस्तलिखित ग्रंथ ही रखे जाते हैं। प्रकाशित ग्रन्थ तो एक के बाद एक जमा दिये जाते हैं। ... हस्तलिखित ग्रन्थों को तथा प्रकाशित ग्रन्थों को प्राकृतिक कारणों से होने वाली हानियों से बचाने के लिये वर्ष में एक दो बार धूप में रखा जाता है। धूप में विशेषकर वर्षा के उपरांत रखा जाता है जिससे कि वर्षा के कारण उत्पन्न नमी तथा दीमक आदि कीटाणु यदि हो तो धूप पाकर नष्ट हो जावे। इस सम्बन्ध में एक दो स्थानों पर मैंने कीटनाशक पाउडर डालने का प्रस्ताव किया तो वह इसलिये स्वीकार नहीं किया गया कि उससे जीव हत्या होती है। जैनधर्म के पंच महाव्रतों में एक व्रत अहिंसा भी है। इसी कारण जीव हत्या के भय से कीटनाशक दवाइयों का उपयोग नहीं किया जाता।
मालवा के शास्त्र भण्डार : जैसा ऊपर कहा गया है कि जैन मंदिरों में
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178