Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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जैरहट नगर जहाँ भट्टारकों की गादी थी। उस स्थान पर भी ग्रन्थ रचना एवं ग्रन्थों की प्रतिलिपि होना स्वाभाविक ही था। साथ ही वहां के आचार्यों के लिये तथा धर्म पिपासु धर्मावलम्बियों के लिये शास्त्र भण्डार भी रहा होगा किन्तु आज उसके सम्बन्ध में हमें कोई जानकरी नहीं मिलती। श्रुतकीर्ति के हरिवंशपुराण ग्रन्थ के अन्त में दो प्रशस्तियां दी गई हैं। पहली प्रशस्ति अपभ्रंश भाषा में एवं दूसरी संस्कृत में है। पहली प्रशस्ति में लिखा है कि यह ग्रन्थ वि.सं.1552 माघ कृष्ण पंचमी सोमवार मालव देशान्तर्गत मण्डवगढ़ में, शाहि गयासुद्दीन के शासनकाल में जेरहट नगर में समाप्त हुआ। दूसरी प्रशस्ति में लिखा है कि सिद्धि सं.1553 आश्विन कृष्ण द्वितीया को मण्डपाचलगढ़ दुर्ग में, सुल्तान गयासुद्दीन के राज्यकाल में दमोवादेश में, महाखान भोजखान, की मौजूदगी में जेरहट नगर के पार्श्वनाथ जिनालय में यह ग्रन्थ परिपूर्ण हुआ।
इस प्रकार मालवा में जैन शास्त्र भण्डारों की कमी नहीं है। लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि जैनधर्मावलम्बी विस्तृत दृष्टिकोण रखकर अपने शास्त्र भण्डारों को विद्वानों के लिये खुले रखे। इसके अतिरिक्त एक सुझाव मेरा यह भी है कि मालवा के जैनशास्त्र भण्डारों की सूचीपत्र के प्रकाशन की व्यवस्था जैन समाज के विद्वानों को करना चाहिये। जब मालवा के समस्त जैनशास्त्र भण्डारों की सची बनकर तैयार हो जावेगी तो सम्भव है कि अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाश में आ सके और उनकी प्रशस्तियों से कई विवादास्पद प्रकरण समाप्त हो सके। साथ ही यह भी सम्भव है कि कुछ चित्रित ग्रन्थ भी उपलब्ध हो जावे और कला के क्षेत्र में मालवा की उपलब्धि और बढ़ जावे।
संदर्भ सूची 1 श्री मांडवगढ़ तीर्थ, पृष्ठ 27 2 श्री प्रशस्ति संग्रह सं.अमृतलाल मगनलाल शाह, पृष्ठ 55, प्रथम भाग . 3 वही, पृष्ठ 9 4 श्री प्रशस्ति संग्रह, सं.अमृतलाल मगनलाल शाह, पृष्ठ 304 . 5 वही, पृष्ठ 145 6 वही, पृष्ठ 259-60 7 वही, पृष्ठ 26 8 प्रशस्ति संग्रह, सं.श्री पं.के. भुजबली शास्त्री, पृष्ठ 151
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