Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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साधु शिवभूति उसी स्थान पर आया। वहां के राजा ने, जो शिवभति का मित्र था, एक मूल्यवान परिधान उसे भेंट में दी।
___ शिवभूति से जो वरिष्ठ साधु थे उन्होंने शिवभूति को उस परिधान का उपयोग करने के लिये मना किया, किन्तु शिवभूति ने उनकी एक न सुनी। तब साधुओं ने उस परिधान को फाड़ डाला। उससे क्रुद्ध होकर शिवभूति ने सब वस्त्र त्याग दिये और नग्न ही चल दिया। शिवभूति की बहिन उत्तरा ने भी उसका अनुसरण किया तथा वह भी नगर होकर अपने भाई के साथ होली। स्त्री की नग्नावस्था की शिकायत होने पर शहर के सभासदों ने कहा कि कोई व्यक्ति स्त्री का यह भद्दा, बेडोल स्वरूप देखने नहीं जावे। इस पर शिवभति ने अपनी बहिन को नग्नावस्था ग्रहण करने से मना कर दिया। दो अन्य व्यक्ति कौण्डिय और कोत्तवीर उसके शिष्य हो गये। इस प्रकार .बोडियो के द्वारा नग्नता - दिसम्बर (दिग्-दिशाएं, अम्बर-वस्त्र) मत का तर्क प्रस्तुत करते हैं।.
... (1) दृष्टिवाद के अतिरिक्त श्वेताम्बरों के ग्यारह अंग हैं जबकि दिगम्बरों के पास एक भी नहीं है। दिगम्बर साहित्य उनके प्रादुर्भाव के बाद अर्थात् 82 ई. सन् के बाद रचा गया।
(2) श्वेताम्बरों के आगम साहित्य में दिगम्बरों का कोई उल्लेख नहीं है। इससे यह सिद्ध होता है कि अंग प्राचीन है तथा दिगम्बर सम्प्रदाय की उत्पत्ति के पूर्व रचे गये हैं। . .
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... (3) गोषाल आजीविक का बौद्ध पिटकों और भगवती सूत्र में वर्णन मिलता है जबकि दिगम्बरों के प्राचीन से प्राचीन साहित्य में ऐसा कोई विवरण नहीं मिलता।
(4) कल्पसूत्र की स्थविरावली में जो गण और कुल मिलते हैं, वे वहीं है जो मथुरा के जैन शिलालेखों में मिलते हैं। ... दिगम्बर मत : श्वेताम्बर दिगम्बर के भेद की उत्पत्ति के विषय में दिगम्बर मतावलम्बी एक दूसरी ही कहानी कहते हैं। उनका कहना है कि चन्द्रगुप्त के राज्य में भद्रबाहु ने मगध में बारहवर्षीय दुर्भिक्ष पड़ने की भविष्यवाणी की थी। अतः साधुओं का एक भाग भद्रबाहु के नेतृत्व में दक्षिण भारत चला गया था। शेष साधु मगध में ही रह गये थे। कुछ कालोपरांत जब इनके प्रधानाचार्य उज्जैन में मिले तब भी दुर्भिक्ष चल रहा था। इस कारण इन्होंने भिक्षा मांगने के लिये जाते समय अर्धफालक के उपयोग की अनुमति अपने शिष्यों को दे दी थी। किन्तु दुर्भिक्ष समाप्ति के पश्चात् अर्धफालक धारण करने वाले साधुओं ने अर्थफालक उतारने से मना कर दिया। नई धारा को पसन्द नहीं करने वाले तत्त्वों ने इसके
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