Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 127
________________ तंत्र क्रियाकलाप टीका आदि ग्रन्थों का भी पता चलता है। महापंडित आशाधर अपनी विद्वता के लिये प्रसद्धि है। इनकी प्रतिभा काव्य, न्याय, व्याकरण, शब्दकोश, अलंकार, धर्मशास्त्र, योगशास्त्र, स्तोत्र और वैद्यक आदि सभी विषयों में असाधारण थी। पं.आशाधर कृत सागारधर्मामृत सप्त व्यसनों के अतिचार का वर्णन, श्रावकधर्म की दिनचर्या और साधक की समाधि व्यवस्था पर प्रकाश डालता है। यह ग्रंथ लगभग 500 संस्कृत पद्यो में पूर्ण हुआ है और आठ अध्यायों द्वारा श्रावकधर्म का सामान्य वर्णन, अष्टमूल गुण तथा ग्यारह प्रतिमाओं का निरूपण किया गया है। व्रत प्रतिमा के भीतर बारह व्रतों के अतिरिक्त श्रावकधर्म की दिनचर्या भी बतलाई गई है। अंतिम अध्याय के 110 श्लोकों में समाधिमरण का विस्तार से वर्णन हुआ है। रचनाशैली काव्यात्मक है। ग्रन्थ पर कर्ता की स्वोपज्ञ टीका उपलब्ध है, जिससे उसकी समाप्ति का समय वि.सं.1296 या ई. सन् 1239 उल्लिखित है। इनकी दूसरी रचना प्रमेय रत्नाकर स्याद्वाद विद्या की प्रतिष्ठापना करता है। आशाधर कृत ही अध्यात्म-रहस्य हाल ही प्रकाश में आया है। इसमें 72 संस्कृत श्लोकों द्वारा आत्मशुद्धि और आत्मदर्शन एवं अनुभूमि का योग की भूमिका पर प्ररूपण किया गया है। आशाधर ने अपनी अनगार धर्मामृत की टीका की प्रशस्ति में इस ग्रंथ का उल्लेख किया है। इस ग्रन्थ की एक प्राचीन प्रति की अंतिम पुष्पिका में इसे धर्मामृत का योगीद्दीपन नामक अठारहवां अध्याय कहा है। इससे प्रतीत होता है कि इस ग्रन्थ का दूसरा नाम योगीद्दीपन भी है और इसे कर्ता ने अपने धर्मामृत के अंतिम उपसंहारात्मक अठाहरवें अध्याय के रूप में लिखा था। स्वयं कर्ता के शब्दों में उन्होंने अपने पिता के आदेश के आरब्ध योगियों के लिये इस प्रसन्न गम्भीर और प्रिय शास्त्र की रचना की थी। इनकी अन्य रचनाओं में धर्मामृत मूल, ज्ञानदीपिका भव्यकुमदचन्द्रिका - यह धर्मामृत पर लिखी टीका है। इसका नाम क्षोदक्षमा था परन्तु विद्वानों के इसकी सरसता सरलता से मुग्ध होकर भव्यकुमुद चन्द्रिका नाम रखा। मूलाराधना शिवार्य की आराधना पर टीका। आराधनासार टीका, नित्य महोद्योत, रत्नत्रय विधान आदि है। धारा के निवासी लाड़बागड़ संघ और बलात्कारगण के आचार्य श्रीचन्द्र ने शिवकोटि की भगवती आराधना पर टिप्पण लिखा है। यह टिप्पण श्रीचन्द्र ने राजा भोज के राजत्वकाल में बनाकर समाप्त किया। (2) कथात्मक साहित्य : कथात्मक साहित्य के अन्तर्गत हम कथाकोश, पौराणिक ग्रन्थ तथा चरित ग्रन्थों एवं ऐतिहासिक प्रकार के ग्रन्थों को सम्मिलित करते हैं। इस श्रेणी में सर्वप्रथम हम पुनाट संघ के आचार्य जिनसेन के इतिहास प्रधान चरित काव्य 'हरिवंश' का उल्लेख करेंगे। इस ग्रंथ की रचना जिनसेनाचार्य [114. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178