Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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मानतुंगाचार्य कृत भक्तामर स्तोत्र के प्रारम्भ करने की शैली पुष्पदन्त के शिवमहिम्न स्तोत्र से प्रायः मिलती है। प्रातिहार्य एवं वैभव वर्णन में भक्तामर पर पात्र केसरी स्तोत्र का भी प्रभाव परिलक्षित होता है। इनका भक्तामर स्तोत्र श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही सम्प्रदायों में समान रूप से समादृत है। कवि की यह रचना इनती लोकप्रिय रही है, जिससे उसके प्रत्येक अंतिम चरण को लेकर समस्या पूर्त्यात्मक स्तोत्र काव्य लिखे जाते रहे हैं। इस स्तोत्र की कई समस्यापूर्तियां उपलब्ध हैं। भक्तामर बहुत ही लोकप्रिय और सुप्रचलित एवं प्रायः प्रत्येक जैन के जिह्वान पर है। दिगम्बर परम्परानुसार इसमें 48 तथा श्वेताम्बर परम्परा में 54 पद्य हैं। स्तोत्र की रचना सिंहोनता छन्द में हुई है। इसमें स्वयं कर्ता के अनुसार प्रथम जिनेन्द्र अर्थात ऋषभनाथ की स्तुति की गई है। तथापि समस्त रचना ऐसी है कि वह किसी भी तीर्थंकर के लिये सार्थक हो सकती है। प्रत्येक पद्य में बड़े सुन्दर उपमा, रूपक आदि अलंकारों का समावेश है। हे भगवन, आप अद्भुत जगत् प्रकाशी दीपक हैं, जिसमें न तेल है, न बाती और न धूप, जहां पर्वतों को हिला देने वाले वायु के झोंके पहुंच नहीं सकते तथापि जिसमें जगत् भर में प्रकाश फैलता है। हे मुनीन्द्र, आपकी महिमा सर्य से भी बढ़कर है क्योंकि आप न कभी अस्त होते, न राहुगम्य है न आपका महान् प्रभाव मेघों के विरुद्ध होता है। आप एक साथ समस्त लोकों का स्वरूप सुस्पष्ट करते हैं। भगवन आप ही बुद्ध हैं, क्योंकि आपके बुद्धि व बोध की विबुध जन अचर्ना करते हैं। आप ही शंकर हैं, क्योंकि आप भुवनत्रय का शम अर्थात् कल्याण करते हैं और आप ही विधाता ब्रह्मा हैं, क्योंकि आपने शिव मार्ग (मोक्ष मार्ग) की विधि का विधान किया है, इत्यादि। इसका सम्पादन जर्मन भाषा में अनुवाद डॉ.याकोबी ने किया है। इस स्तोत्र के आधार से बड़े विशाल साहित्य का निर्माण हुआ है। इस पर कोई 20-25 तो टीकाएं लिखी गई हैं एवं भक्तामर स्तोत्र कथा व चरित्र, छाया स्तवन, पंचांग विधि, पादपूर्ति स्तवन, पूजा, मंत्र, माहात्म्य, व्रतोद्यापन आदि भी 20-25 से कम नहीं है। प्राकृत में भी मानतुंग कृत भयहर स्तोत्र पार्शवनाथ की स्तुति में रचा गया है। प्रभाचन्द्र ने वृहत् स्वयंभू स्तोत्र टीका लिखी है। पं.आशाधर कृत सिद्धगुण स्तोत्र स्वोपज्ञ टीका सहित" तथा भूपाल चतुर्विशति टीका भी इनके ही द्वारा लिखी बताई जाती है।
(5) अलंकार और व्याकरण सहित : मालवा के जैन विद्वानों ने अलंकार एवं व्याकरण जैसे विषयों पर भी साहित्य सृजन किया है। प्रभाचन्द्र कृत शब्दाम्भोज भास्कर एक व्याकरण ग्रन्थ है। पं.आशाधर ने क्रियाकलाप के नाम से व्याकरण ग्रन्थ की रचना की तथा अलंकार से सम्बन्धित काव्यालंकार टीका लिखी।
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