Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
View full book text
________________
छह नाम दिये गये हैं। ग्रन्थ के ये ही चार परिच्छेद कहे जा सकते हैं। अधिकांश नाम और उनके पर्याय तद्भव हैं। सच्चे देशी शब्द अधिक से अधिक पंचमांश होंगे।28 संस्कृत गद्यातमक आख्यानों में धनपाल कृत तिलकमंजरी (ई.970) की भाषा शैली बड़ी औजस्विनी है। 29 मुनि श्रीचन्द्र ने महाकवि पुष्पदंत के उत्तरपुराण का टिप्पण लिखा है जिसे उन्होंने सागरसेन नाम से सैद्धान्तिक विद्वान् से महापुराण के विषय में पदों का विवरण जानकर और मूल टिप्पण का अवलोकन कर वि.सं.1080 में राजा भोज के राज्यकाल में लिखा। इसके अतिरिक्त इन्होंने रविषेण कृत पद्मचरित पर टिप्पण वि.सं.1087 में एवं पुराणसार वि.सं.1080 में लिखा। प्रभाचन्द्र ने आराधना गद्य कथाकोश की रचना की। इसमें चन्द्रगुप्त के अतिरिक्त समन्तभद्र और अकलंक के चरित्र भी वर्णित है। अपभ्रंश भाषा के एक कवि 'वीर' की वरांगचरित, शांतिनाथ चरित, सुद्धयवीर, अम्बादेवी राय और जम्बूसामिचरित् का पता चलता है। किन्तु इनकी प्रथम चार रचनाओं में से आज एक भी उपलब्ध नहीं है। पांचवी कृति जम्बूस्वामी चरित्र ग्रन्थ की अंतिम प्रशस्ति के अनुसार वि.सं.1076 में माह माघ की शुक्ल दसवीं को लिखी गई। कवि ने 11 संधियों में जम्बूस्वामी का चरित्र चित्रण किया है। वीर के जम्बूसामि चरिउ में 11वीं सदी के मालवा का लोक जीवन सुरक्षित है। वीर के साहित्य का महत्त्व 'मालवा' की भौगोलिक, आर्थिक, राजनैतिक और लोक सांस्कृतिक दृष्टि से तो है ही, परन्तु सर्वाधिक महत्त्व मालवी भाषा की दृष्टि से है। मालवी शब्दावली का विकास 'वीर' की भाषा में खोजा जा सकता है। नयनंदी कृत सकल विधि-विधान कहा वि.सं.1100 में लिखा गया है। यद्यपि यह खण्ड काव्य के रूप में है किन्तु विशाल काव्य में रखा जा सकता है। इसकी प्रशस्ति में इतिहास की महत्त्वपूर्ण साम्रगी प्रस्तुत की गई है। उसमें कवि ने ग्रन्थ बनाने के प्रेरक हरिसिंह मुनि का उल्लेख करते हुए अपने से पूर्ववर्ती जैन-जनेतर और कुछ समसामयिक विद्वानों का भी उल्लेख किया है। कवि दामोदर ने राजा देवपाल के राज्य में नागदवे के अनुरोध पर नैमिजिन का चरित्र बनाया था। पं.आशाधर ने अमरकोश की टीका भी लिखी है। और परमार राजा देवपाल के राज्यकाल में पं.आशाधर ने सं.1292 में त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र की रचना की जिसमें 62 शलाका पुरुषों का चरित्र अपेक्षाकृत संक्षेप से वणन किया गया है, जिसमें प्रधानतः जिनसेन गुणभद्र कृत महापुराण का अनुसरण पाया जाता है। 39
(3) काव्य और महाकाव्य : मालवा के जैन विद्वानों में अनेक बड़े कवि हो चुके हैं कुछ काव्य ग्रन्थों का जो चरित एवं ऐतिहासिक श्रेणी में आते हैं, उल्लेख हम ऊपर कर चुके हैं। कुछ ग्रन्थ जिसका उल्लेख महाकाव्यों या लघु काव्यों की
| 116
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org