Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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24 तीर्थंकरों का मूर्तिफलक क्रमांक 18 है। यह लाल पत्थर का 1 फीट 6 इंच लम्बा व 10 इंच चौड़ा है जिस पर 23 खड़े व एक बैठे तीर्थंकर है। मूर्ति क्रमांक 23 में संगमरमर के बने वृषभनाथ है। वाहन वृषभ के नीचे अंकित है। आकार 1 फीट 10 इंच व 9 इंच है। वृषभनाथ के ऊपर देवता किन्नर फल बरसा रहे हैं। दो परिचारिकाएं चंवर हिला रही है, पैरों के पास एक दम्पत्ति करबद्ध खड़ी है। तीर्थंकर की मुखाकृति में परम संतोष का भाव करुणा अंकित है। __ मूर्ति क्रमांक 61 जैन देवी सुमेधा की है। आकार 3.3 इंच - 2.10 इंच है। नीचे परमारकालीन लिपि में देवी का नाम अंकित हैं। कुण्डल गलहार व एक किन्नर व एक गण है। नीचे वर्द्धमान पुरान्वय व सं.1202 का अभिलेख है, जो बदनावर का होना प्रमाणित करता है। उपर्युक्त विवरण परमारकालीन मूर्तियों का है। इस संग्रहालय में मुस्लिमकालीन मूर्तियां भी पर्याप्त मात्रा में संग्रहित है जो मूर्तिकला के उत्तम उदाहरण है। जैन मूर्तियों के अतिरिक्त इस संग्रहालय में जैनेतर प्रतिमाएं भी संग्रहित है।
जैन पुरातत्व संग्रहालय के प्रवेशद्वार के दाहिनी ओर के प्रस्तर. फलक पर अजानुबाहु खड़ी मुद्रा में तीर्थंकर अंकित है। ध्यानावस्था में आकृति में सौम्यता व दिव्य तेज है। दिव्य वृक्ष की टहनियां है व पदार्चन करते हुए दो सेवक हैं। ऊपर अर्ध गोलाकृति में आठ संगीतज्ञ हैं जिनमें लम्बी बांसुरी, घड़ियाल, तबला, ढोलक, तुरही, झांझ, वादक हैं। संगीत के आरोह अवरोह पर ताल लिये एक नर्तक का अंकन विशेष दृष्टव्य है कि उसके पूरे शरीर में प्रसन्नता है व लय पर नृत्य कर रहा है। देवता पुष्प वृष्टि कर रहे हैं। सम्पूर्ण प्रतिमा शास्त्रीय विधान पर निर्मित व प्रस्तर कार्य सूक्ष्म है। इस प्रतिमा का निर्माणकाल शैलीगत आधार पर 950 से 1050 ई. का है।
उज्जयिनी से प्राप्त एक अन्य प्रतिमा महावीर की है उसका शीर्ष भग्न हो चुका है किन्तु पीछे की प्रभावली व ऊपर का आकाश अंकन स्पष्ट है। मंदिर के प्रमुख भाग में यह प्रस्तर फलक लगाया गया होगा। ऊपर की प्रभावली में हाथी, किन्नर, कमल, व्याल मुख का अंकन है। हाथी के अंकन में पुष्टता है व सूंड में कलात्मक घुमाव। परमार काल में निर्मित यह प्रतिमा खण्ड उज्जयिनी की श्रेष्ठ मूर्तियों में रखा जा सकता है।
उज्जयिनी में धार्मिक सामांजस्य अत्यधिक रहा है और वह मूर्ति शिल्प में स्पष्टतः दिखाई देती है। भगवान महावीर को अवतारों में परिगणित कर अन्य अवतारों का कलात्मक अंकन एक प्रस्तर फलक में उपलब्ध होता है। फल में प्रमुख अंकन स्थिर मुद्रा में खड़े महावीर का है। धुंघराले बाल, कर्ण आभूषण 180]
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