Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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सौम्य मुद्रा में खड़े हैं और ऊपर तीनों और चतुर्हस्ता विष्णु, मत्स्यावतार, कूर्मावतार, कल्की, वामन, नृसिंह आदि का अंकन है। अन्य प्रतिमाओं में बैठी मुद्रा में तीर्थंकर का अंकन है।
जैन चित्रकला : मालवा में भारतीय इतिहास की अमूल्य निधि विद्यमान है। बाग के गुहामण्डप, विदिशा उदयगिरि की गुफांए, ऊन के ऐतिहासिक मंदिर तथा विभिन्न स्थानों से उपलब्ध महत्त्वपूर्ण प्रतिमाएं एवं शिलालेख प्रमुख हैं। जैनधर्म का योगदान भी कम नहीं रहा है। चित्रकला के क्षेत्र में भी जैन मंदिर पीछे नहीं है। आज जहां भी हम जैन मंदिर में प्रवेश करते हैं, वहां की चित्रकारी हमारा मन मोह लेती है। मंदिरों में जो चित्रकारी के दृश्य अंकित किये जाते हैं, वे किसी तीर्थंकर से सम्बन्धित या जैनधर्म के सिद्धान्तों एवं मान्यताओं पर आधारित होते हैं। कांच के मंदिरों का भी अपना विशिष्ट स्थान है। प्रस्तुत लेख में मंदिरों की चित्रकारी का उल्लेख न करते हुए, हस्तलिखित ग्रन्थों पर जो लघु चित्र मिलते हैं, उनका अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है। आज भी मालवा के जैन मंदिरों के शास्त्र भण्डारों में अनेक चित्र हस्तलिखित ग्रन्थ पड़े हैं किन्तु प्रकाश में न आने के कारण उन पर कोई शोधकार्य नहीं हो सका। इन्दौर के पीपली बाजार स्थित महावीर भवन के पुस्तकालय में एक शास्त्र भण्डार भी है उनके ट्रस्ट के नियमों की कठिनाई के कारण मैं उक्त ग्रन्थों के अवलोकन से वंचित रहा। मालवा में लिखे गये चित्रित ग्रन्थ जो डॉ. मोतीचन्द्र को उपलब्ध हुए उन पर उन्होंने विद्वतापूर्वक प्रकाश डाला है।
9वीं से 12वीं शताब्दी तक के जो भित्ति चित्र मालवा, दक्षिण आदि में मिले हैं, उनके परीक्षण से एक बात स्पष्ट होती है कि कुछ बातें एक समान है। जैसे कच्चा बिना साफ किया हुआ रंग, प्रतिमा की बनावट, रेखाकृति, आंखों का आकाश की ओर उठाव, नुकीली नाकं व ठोड़ी, वृक्षों, पशुओं और पक्षियों आदि का परम्परागत व्यवहार एक समान है। यद्यपि स्थानीय परम्परा तथा रीतिरिवाजों के कारण कुछ भिन्नता आ गई, किन्तु शैलीगत दृष्टिकोण से सभी भित्ति चित्रों में कोई अन्तर नहीं आता है। इसके प्रमाण में माण्डवगढ़ में सन् 1465 में रचित कल्पसूत्र की चित्रित हस्तलिखित ग्रन्थ को लिया जा सकता है। 59
इसी समय का (सन् 1466 ) एक चित्रित हस्तलिखित कल्पसूत्र ग्रंथ मुनि कांतिविजयजी के संग्रह में, जो कि अब आत्मानंद ज्ञान भण्डार नरसिंहजी की पोल बड़ोदा में है तथा जिसका केटलाग नं. 2186 है। जिसकी प्रशस्ति के अनुसार यह ग्रंथ माण्डवगढ़ में लिखा गया था। इस ग्रंथ में जो चित्र हैं, वे इस प्रकार हैं:(1 ) त्रिशला के चौदह स्वप्न, (2) नैमिनाथ का विवाह जुलूस (3)
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