Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
View full book text
________________
26
प्रमाणित होता है। ग्राम के आसपास और भी अनेक खंडहर दिखाई देते हैं। जनश्रुति है कि यहां बल्लाल नामक नरेश ने व्याधि से मुक्त होकर सौ मंदिर बनवाने का संकल्प किया था, किन्तु अपने जीवन में वह 99 ही बनवा पाया । इस प्रकार एक मंदिर कम रह जाने से यह स्थान 'ऊन' नाम से प्रसिद्ध हुआ। 2" हो सकता है कि ऊन नाम की सार्थकता सिद्ध करने के लिये ही यह आख्यान गढ़ा गया हो। किन्तु यदि उसमें कुछ ऐतिहासिकता हो तो बल्लाल होयसल वंश के वीर बल्लाल हो सकते हैं जिनके गुरु एक जैन मुनि थे। इस प्रकार हमें डॉ. हीरालाल जैन का मत ठीक प्रतीत होता है, क्योंकि ऊन आज भी अपने इस दो अक्षर वाले नाम से अधिक परिचित एवं प्रसिद्ध है। ऊन में उपलब्ध अवशेषों से स्पष्ट है कि यह एक दिगम्बर मतावलम्बियों का तीर्थस्थल है। क्योंकि यहां प्राप्त लगभगसमस्त प्रतिमाएं दिगम्बर संप्रदाय की है।
समग्र रूप से ऊन एक पवित्र तीर्थ के साथ ही साथ स्थापत्य कला का वैभव भी अपने में समेटे हुए है।
(8) धमनार : धमनार अथवा धर्मराजेश्वर के नाम से परिचित यह ग्राम मन्दसौर जिले में स्थित है। यहां बाजार में आदिनाथ का घूमट बंधी मंदिर है। यहीं पर एक पहाड़ी है जिसका व्यास 3-4 मील का है तथा ऊंचाई 140 फीट है जिसके ऊपर का भाग मैदान जैसा सपाट है और उसके चारों ओर प्राकृतिक दीवार बनी हुई है। यहां कुछ गुफाएं हैं जिनकी कोई निश्चित संख्या नहीं कही जा सकती। सन् 1821 में कर्नल टाड ने जब यहां का निरीक्षण किया था तब उसने उनकी संख्या लगभग 170 गुफाएं बताई। 27 कर्नल टाड के साथ उनके धर्मगुरु जैन यति भी थे और उन्होंने ही टाड को इन गुफाओं को जैन गुफा होना बताया था | 28 यह भी उल्लेखनीय है कि सबसे पहले जेम्स टाड ने ही इस गुफा समूह को जैनधर्म से सम्बन्धित बताया है और उसी के आधार पर इस स्थान का जैनतीर्थ के रूप में वर्णन कर इसके महत्त्व को जैनधर्म के लिये बढ़ाने का प्रयास जैनतीर्थ सर्वसंग्रह भाग दो नामक ग्रन्थ में किया गया है। जबकि अन्य विद्वानों के अनुसार ये गुफाएं बौद्धधर्म से सम्बन्धित प्रमाणित होती है। इन गुफाओं का समय 5-6 सदी के लगभग निश्चियत किया गया है। 29 वास्तविकता कुछ भी रही हो आज तो धमनार की ये गुफाएं जैनतीर्थ का रूप ले चुकी हैं।
(9) बही पारसनाथ : वई या बही पारसनाथ से प्रसिद्ध श्वेताम्बर तीर्थ मन्दसौर से चित्तौड़ की ओर पिपलिया नामक स्टेशन से 3 मील की दूरी पर स्थित है। यहां एक आश्रम और दो धर्मशालाएं हैं। मूल नायक श्रीवई पार्श्वनाथ का शिखर बंध मंदिर है। जो श्रीसंघ द्वारा लगभग 1000 वर्ष पूर्व बनवाया गया
96
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org