Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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इस मंदिर के सभा मंडप और शिखर में कांच का काम है। देरासर के नीचे के भाग में एक प्राचीन जैन मंदिर का होना प्रतीत होता है। क्योंकि उसका शिखर भाग ऊपर से दिखाई देता है। यहां प्रतिवर्ष मगसर कृष्ण पक्ष की दसमी को मेला लगता है।
(18) बिबड़ौद : यह स्थान रतलाम से 6 मील तथा सांगोदिया जैनतीर्थ के पश्चिम की ओर 212 मील की दूरी पर स्थित है। यह श्वेताम्बर जैनों का प्राचीन तीर्थ माना जाता है। विशाल बाड़े में देरासर युक्त सौंध शिखरी मंदिर सं.1300 में बना बताया जाता है। यहां का मंदिर केसरियानाथजी के मंदिर के नाम से पुकारा जाता है।
मध्य के जिनालय में ऋषभदेव की 11 हाथ बड़ी प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा बैलू की बनी हुई है। इस पर लेख खुदा है। बाहर के भाग में श्यामवर्ण की 2 प्रतिमाएं हैं और पद्मासन की स्थिति की 6 जैन प्रतिमाएं विराजमान है। सभी मूर्तियां प्राचीन प्रतीत होती है। पीछे के भाग में दो देरासर में पार्श्वनाथ और अगले भाग के देरासर में चन्द्रप्रभस्वामी आदि की श्वेतवर्ण की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं।
इस मंदिर के पास एक किले के भग्नावशेष हैं। यात्रियों के लिये यहां एक धर्मशाला है। यहां प्रतिवर्ष पौष कृष्णपक्ष की 10वीं से अमावस्या तक मेला लगता है। यह जैनों का प्राचीन तीर्थ है किन्तु आश्चर्य इस बात का है कि यहां एक भी जैन धर्मानुयायी का घर नहीं है।
(19) सांगोदिया : यह ग्राम रतलाम से 4 मील दूर है तथा ग्राम से 1 मील की दूरी पर श्वेताम्बर जैनतीर्थ के नाम से श्री ऋषभदेव भगवान का शिखरबंध मंदिर है। मूलनायक की श्यामवर्ण की प्रतिमा 2 हाथ ऊंची है। अन्य छोटी बड़ी 7 प्रतिमाओं के साथ 2 मूर्तियां अधिष्ठायक देवताओं की भी है। यात्रियों के ठहरने के लिये मंदिर के पास ही धर्मशाला है। प्रतिवर्ष कार्तिक और चैत्र की पूर्णिमा के दिन मेला लगता है। इस स्थान पर भी जैन धर्मानुयायियों का एक भी घर नहीं
(20) सेमलिया : रतलाम के पास नामली रेलवे स्टेशन से 2 मील की दूरी पर सेमलिया नामक प्राचीन ग्राम है। यहां 1 उपाश्रय, 1 जैन धर्मशाला, 1 पुस्तक भण्डार और एक मजैन मंदिर है।
तीन शिखरवाले इस जैन मंदिर में मूलनायक शांतिनाथ की श्यामवर्ण की प्राचीन प्रतिमा 3 हाथ ऊंची बेलूरी बनी है। मूलनायक की बांयी ओर शांतिनाथ और कुंथुनाथ की तीन-तीन फीट ऊंची प्रतिमाएं हैं जिनके ऊपर संवत् 1543 के लेख विद्यमान हैं। लगभग इसी समय इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था।
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