Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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इसी प्रतिमा के कारण ही यह नगर जैनतीर्थ प्रसिद्ध हुआ। इसी नगर में आचार्य आर्यरक्षितसूरि का जन्म वीरसंवत् 502 में हुआ था तथा यहीं वीरसंवत् 597 में आचार्य का निर्वाण भी हुआ।" 15वीं शताब्दी के मांडवगढ़ के मंत्री संग्राम सोनी के द्वारा दशपुर में जैन मंदिर बनाने का उल्लेख है। जैन तीर्थ सर्वसंग्रह भाग 2 ग्रन्थ के अनुसार यहां के खलचीपुर के पार्श्वनाथ मंदिर की दीवारों में लगी हुई द्वारपालकों की प्रतिमाएं गुप्तकालीन है और खानपुरा सदर बाजार के पार्श्वनाथ के घर देरासर (गृह मंदिर) में पद्मावती देवी की प्रतिमा भी प्राचीन है। 12 किन्तु जब मैं दशपुर के जैन मंदिर और शास्त्र भण्डारों के अवलोकनार्थ गया था तब मैंने यह पाया कि मंदिरों के जीर्णोद्धार में प्राचीनता समाप्त हो जाती है। यही बात खलचीपुर के पार्श्वनाथ मंदिर के लिये भी कही जा सकती है। मुझे वहां की दीवारों में द्वारपाल की प्रतिमाएं दिखाई ही नहीं दी। दशपुर में जैनधर्म के अतिरिक्त और भी ऐतिहासिक सामग्री और स्थानों का बाहुल्य है।
(4) मांडवगढ़ : मांडवगढ़ इतिहास प्रसिद्ध स्थानों में से एक है। यह आज भी देशी एवं विदेशी पर्यटकों के लिये आकर्षण का स्थान बना हुआ है। धाराधिपति राजा जयसिंह तृतीय का मंत्री पृथ्वीधर या पेथड़ सेनापति कुशल राजनीतिज्ञ
और चरित्रवान पुरुष था। पृथ्वीधर राज्य की उन्नति में सदैव आगे रहता था। उसकी धाक के कारण कोई भी दुश्मन धार पर हमला करने का विचार नहीं करता था। जितना बड़ा वह राजनीतिज्ञ था उतना ही वह धर्मात्मा भी था। उसके समय में मांडवगढ़ में 300 जैन मंदिर थे। उसमें प्रत्येक पर पेथड़शाह के सोने के कलश चढ़े हुए थे। उसी ने यहां ढाई लाख रुपये व्यय करके शत्रुजय अवतार नामक 72 जिनालयवाला भव्य नया मंदिर बनवाया था। इसी ने भव्य संघ निकाला। इसी ने 72 हजार रुपये से सम्पूर्ण नगर को सजाकर महोत्सवपूर्वक श्री धर्मघोषसूरि का मांडवगढ़ में प्रवेश करवाया था। करोड़ों रुपये खर्च करके 84 स्थानों में जैन मंदिरों का निर्माण करवया तथा 7 सरस्वती भण्डारों की स्थापना करवायी थी। . .
पृथ्वीधर के पश्चात् मांडवगढ़ के मंत्री पद पर उसका पुत्र झांझण नियुक्त हुआ। यह भी अपने पिता के समान ही पराक्रमी था। यह भी कुशल राजनीतिज्ञ और धार्मिक प्रकृति का था। इसने संवत् 1349 में करोड़ों रुपये व्यय करके श@जय का संघ निकाला था। करेड़ा में सात मंजिला भव्य मंदिर बनवाया था। इसके छः पुत्र थे, जो सभी या तो मंत्री पद पर थे या राज्य में उच्च अधिकारी थे।
मांडवगढ़ में 300 जैन मंदिर थे तथा एक लाख जैन घरों की आबादी थी जिसमें सात लाख जैनी निवास करते थे। ऐसी किंवदंती है कि यहां जब भी कोई
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