Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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रानियों की गाथा है। अवंति सुकुमाल के पुत्र महाकाल ने आर्य सुहस्तिसूरि के उपदेश से वीरनिर्वाण संवत् 250 के लगभग क्षिप्रा के किनारे पिता का स्मारक श्री अवंति पार्श्वनाथ का गगनचुम्बी विशाल मंदिर बनवाया जो महाकाल के मंदिर के दूसरे नाम से आज पहिचाना जाता है। यह जैन मंदिर पुष्यमित्र के समय में महादेव के मंदिर में परिवर्तित हुआ। श्री सिद्धसेन दिवाकर ने इस मंदिर में से श्री पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रकट की थी और उनके उपदेश से इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था। इसमें प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है कि यह कपोल कल्पना है।
इस घटना का प्राचीन श्वेताम्बर आगम से लेकर चूर्णियों, टीकाओं, प्रबन्धों और कथाओं में थोड़े बहुत अन्तर से एक समान उल्लेख मिलता है। इस विषय में डॉ.शार्लाटे क्राउझे ने "जैन साहित्य और महाकाल मंदिर" शीर्षक लेख में विस्तार से प्रकाश डाला है जिसका संक्षिप्त सार इस प्रकार है:
उज्जैणीनयरीए अवंतिनामेण विस्सुओ आसी। पाओवगमनिवनो, सुसाणमज्झम्मि एशंतो।। . तिन्नि रयणीए खडओ, मल्लुकी, रुढ़िया विकहुंती सोवि त? खज्जमाणो, पडिवन्नो उत्तम अटुं।।
अर्थात् उज्जैनी नगरी में अवंति नामक विख्यात पुरुषा था जिसने एकांत में समाधि लेकर मरना स्वीकार किया। रुष्ट सियालनी ने तीन रात तक चूस चूस कर खाया। इस प्रकार से भक्षित होने पर उन्होंने उत्तमार्थ प्राप्त किया।
यही बात "मरणसमाहिपट्टण्णाय" में इस प्रकार है:मरणम्मि जस्स मुवकं, सु कुसुम गन्धोदयं च देवेहि। अज्जवि गंधवई सा, तं च कुडंगीसखाणं।।
अर्थात् उसके मरते समय देवताओं ने पुष्प एवं सुगंधित जल वर्षा की। आज भी गंधवती नदी और कुडंगीसर नामक स्थान विद्यमान है। ____उपर्युक्त गंधवती और इस नाम का घाट क्षिप्रा के प्रवाह के पूर्व दिशा में अवंति पार्श्वनाथ जैन मंदिर के पास आज भी विद्यमान है। इस ग्रन्थ की चूर्णि में बताया गया है कि
तीसे पुत्तो तत्व देवकुलं करोति, तं इयाणि महाकालं जातं। ।
लोकेणं परिग्राहित।। इसके पुत्र ने जहां देव मंदिर बनवाया, वहां महाकाल बन गया। अन्य धर्मावलम्बियों ने उसे ग्रहण कर लिया। '
इस जैन मंदिर को जो "महाकाल का मंदिर बन गया" शैवों ने इसे ग्रहण
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