Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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ई.सन् 12वीं सदी के पूर्व इस प्रकार के उपभेद कम दिखाई देते हैं किन्तु 14वीं और 15वीं शताब्दी के पश्चात यह विभेदीकरण की प्रवृत्ति बढ़ चली है।
जैनधर्म के इन भेदों और उपभेदों के विस्तार में हम नहीं गये हैं, केवल प्रमुख उपभेदों ही से ही संक्षिप्त चर्चा करदी है।
संदर्भ सूची: 1 श्री तपगच्छ श्रमण वंश वृक्ष, पृष्ठ 27 | Survey, Page 52-53..
दर्शनसार, पृष्ठ7, श्रमण भगवान महावीर, 18 कल्पसूत्र भाग 22, पृष्ठ 288 भाग 4 पृष्ठ 269, श्री तपगच्छ श्रमणवंश 19 Jainism In Rajasthan, Page 56-57. वृक्ष पृष्ठ 28 और Encyclopaedia of| 20 Jainism In Rajasthan, Page 58. Religion and Ethics, Vol. I, Page 21 Indian Antiquary Vol. IX, page 248. 259.
122 श्रमण भगवान महावीर भाग 5, खण्ड 3 श्रमण भगवान महावीर, भाग-4, पृ.272 प र 4 आवश्यक भाष्यवृत्ति, पृष्ठ 418, 27 Im 5 The History of Jaina Monachism,|24 Jainism In Rajasthan, Page 59. Page 80.
25 श्रमण भगवान महावीर भाग 5, खण्ड 6 Jainism In Rajasthan, Page 54.
2. पृष्ठ 65 Jaina Antiquary Vol. VIII-1 Pagel26 वही, पृष्ठ 66 35. दर्शनसार पृष्ठ 60
| 27 Jainism In Rajasthan, Page 60. 8 The History of Jaina Monachism,
28 Ibid, Page 60. Page 81.
| 29 Jain-Community - A Social 9 Jaina Antiquary xi-11, page 67,
Survey, Page 60. Indian Antiquary No.37, Page 37.
30 श्री तपगच्छ श्रमण वंश वृक्ष, पृष्ठ 28 38 10 Indian Antiquary Vol. III, page|
31 Jainism In Rajasthan, Page 69.
| 32 Ibid, Page 69. 155-158.
33 The History of Jaina Monachism, 11 History of Jain Monachism, Page 82.
Page 549. 12 Ibid, Page 82.
134 विद्यावाणी वी.नि.सं.2498 13 Epigraphia Indica, Vol. xx,Page
| 35 यह लेख मुझे जयसिंहपुरा संग्रहालय के
श्री सत्यंधरकुमारजी सेठी के सौजन्य से 14 History of Jain Monachism, Page
प्राप्त हुआ। 82.
36 भट्टारक सम्प्रदाय, पृष्ठ 208 से 209 15 Ibid, Page 82.
37 दर्शनसार, पृष्ठ 38 16 Encyclopadeia of Religion &
138 History of Jain Monachism, Page ____Ethics 1, Page 267.
545. 17 Jaina-Community - A Social
80.
40
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