Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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अग्रवाल शब्द का अर्थ अग्रेभव अग्रवालाः अर्थात् सबसे पहले होने वाले वैश्य लिखा है । परन्तु यह भी प्रमाणाभाव में प्रामाणिक नहीं कहा जा सकता।
(5) कुछ विद्वानों ने अग्रोहा ( महाराज अग्रसेन की राजधानी) से अग्रवाल शब्द का सम्बन्ध लगाकर उसका अर्थ अग्रोहावाला अर्थात् अग्रोहा के रहने वाले किया। यह अर्थ कुछ माननीय कहा जा सकता है। दूसरी जातियों के अन्त में भी 'वाल' शब्द उपयोग में लाया जाता है। जैसे खण्डेलवाल, ओसवाल, पोरवाल, मीरनवाल, पल्लीवाल आदि। इनमें वाल शब्द निवास स्थान का ही द्योतक है, यहां वाल शब्द का अर्थ रहने वाला या निवासी ही होता है. जैसा कि खण्डेलावाल का अर्थ खण्डेला का रहनेवाला और पल्लीवाल का अर्थ पाली को रहनेवाला होता है । रात-दिन की बोलचाल में सुगमता लाने के ख्याल से खण्डेलवाल का विकृत स्वरूप खण्डेलवाल बन गया। इसी प्रकार अग्रोहावाला शब्द भी सुगमता के ख्याल से अग्रवाल बना लिया गया। परन्तु यदि हम अग्रोहा से अग्रवाल हुए यह मानलें तो प्रश्न होता है कि अग्रोहा का नाम अग्रोहा कैसे हुआ? यदि महाराज अग्रसेन से अग्रोहा बसा, यह मानें तो फिर अग्रवाल शब्द का भी सम्बन्ध सीधे उन्हीं से न लगाकर अग्रोहा का सहारा लेने की क्या आवश्यकता है?
(6) भारतेन्दु हरिशचन्द्र ने 'अग्रवालों की उत्पत्ति' नामक अपनी पुस्तक में अग्रवाल शब्द को अग्रवाल इन दो शब्दों से बना हुआ माना और इसका अर्थ अग्र का बालक अर्थात् अग्रसेन की संतान किया है। कहना न होगा कि यह निष्कर्ष प्रमाणाभाव में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
उपर्युक्त संदर्भों से स्पष्ट होता है कि अग्रवाल जाति की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं। श्री वी. ए. सांगवे का कथन है कि अग्रवाल जाति की उत्पत्ति के सम्बन्ध में साधारणतः ऐसा विश्वास है कि ये उत्तरभारत स्थित चम्पावती नगरी के राजा अग्रसेन के वंशज है। राजा अग्रसेन के 18 पुत्र थे। जिनका विवाह नागवंश की लड़कियों से हुआ था । अग्रसेन की मृत्यु के उपरांत उनके पुत्रों ने पंजाब में अग्रोहा नामक नगर की स्थापना की और तब से ये अग्रवाल कहलाने लगे। अठारह पुत्रों के नाम से अठारह गोत्र बने, किन्तु किसी . कारणवश अंतिम गौत्र आधी मानी जाती है। इस प्रकार अठारह गोत्रों के स्थान पर साढ़े सतरह गोत्र अग्रवालों में है | 30
अन्य वणिक् जातियों की तरह ही इनमें भी दसा बीसा भेद है। इसके अतिरिक्त अग्रवालों में अब एक तीसरा भेद भी प्रकाश में आया है जो मध्य प्रान्त में 'पांचा' के नाम से परिचित है किन्तु इसकी उत्पत्ति के विषय में कोई निश्चित धारणा नहीं है। इन समस्त जातियों में आपस में खान-पान एवं विवाह प्रचलित नहीं है। 31
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