Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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में बाद के साहित्य तथा किंवदन्तियों के माध्यम से जानकारी प्राप्त होती है। मालवा में प्राचीनतम गुफाएं एकमात्र उदयगिरि (विदिशा) में है। त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित पर्व 10 सर्ग 2 से विदित होता है कि चण्डप्रद्योत ने जीवंतस्वामी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा मन्दसौर में करने के लिये तथा उसकी सेवा आदि के लिये 1200 गांव दान में दिये थे किन्तु इस काल के कोई अवशेष मन्दसौर से अद्यावधि प्राप्त नहीं हुए हैं।
डॉ.डी.आर.पाटिल का कहना है कि सारंगपुर में मौर्यकालीन कोई जैन अथवा हिन्दू मंदिर नहीं है, परन्तु उनके खण्डहर अवश्य मिलते हैं।' डॉ.के.सी.जैन के अनुसार साहित्यिक साक्ष्य के आधार पर सम्प्रति ने भी मालवा, काठियावाड़ और राजस्थान में बहुत से जैन मंदिरों का निर्माण करवाया था, किन्तु उनका अस्तित्व वर्तमान काल में नहीं है। इसके अतिरिक्त शक कुषण काल में भी जैनधर्म के उन्नतावस्था में होने के साहित्यिक उल्लेख उपलब्ध होते हैं। किन्तु पुरातात्विक अवशेषों की उपलब्धि के अभाव में उन्हें प्रमाण मानना कठिन है। इस काल की मूर्तियां मथुरा के आसपास पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हुई है। सम्भव है भविष्य में मालवा में भी पर्याप्त उत्खनन द्वारा कुछ पुरातात्विक सामग्री इस समय की उपलब्ध हो जाय। ___ गुप्त्काल : इस काल हमें जैन स्थापत्य के पुरातात्विक अवशेष प्राप्त होते हैं। विदिशा के पास उदयगिरि की पहाड़ियों में बीस गुफाएं हैं। उनमें से क्रमानुसार प्रथम एवं बीसवीं नम्बर की गुफाएं जैनधर्म से संबंधित हैं। इन गुफाओं के सम्बन्ध में विद्वानों ने पर्याप्त प्रकाश डाला है। डॉ.हीरालाल जैन का कहना है- "पहली गुफा को कनिंघम ने झूठी गुफा का नाम दिया है, क्योंकि वह किसी चट्टान को काटकर नहीं बनाई गई है किन्तु एक प्राकृतिक कन्दरा है, तथापि ऊपर की प्राकृतिक चट्टान को छत बनाकर नीचे द्वार पर चार खम्बे खड़े कर दिये गये हैं, जिससे उसे गुफा मंदिर की आकृति प्राप्त हो गई है। स्तम्भ घट पत्रावली प्रणाली के बने हुए हैं, जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, आदि जैन मुनि इसी प्रकार की प्राकृतिक गुफाओं को अपना निवास स्थान बना लेते थे। उस अपेक्षा से यह गुफा भी ई.पू.काल से ही जैन मुनियों की रही होगी, किन्तु इसका संस्कार गुप्तकाल में हुआ, जैसा कि वहां के स्तम्भों आदि की कला तथा गुफा में खुदे हुए एक लेख से सिद्ध होता है। इस लेख में चन्द्रगुप्त का उल्लेख है, जिससे गुप्त सम्राट द्वितीय का अभिप्राय समझा जाता है और जिससे उसका काल चौथी शती का अंतिम भाग सिद्ध होता है। पूर्वी दिशावर्ती बीसवीं गुफा में पार्श्वनाथ तीर्थंकर की अतिभव्य मूर्ति विराजमान है। यह सब खंडित हो गई हैं, किन्तु उसका नागफण
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