Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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मातंग और सिद्धायनी सहित वर्द्धमान आदि।' द्वारपाल वीणा सहित, चार यक्ष, मातंग यक्ष और शौधनिधि सहित। __(2) उपर्युक्त भवानी मंदिर से 50 फीट दक्षिण पूर्व में नैमिनाथ की मूर्ति है तथा आदिनाथ का मस्तक भाग, एक यक्ष और वर्द्धमान की मूर्ति है।
(3) दरगाह : यहां वर्द्धमान महावीर की मूर्ति को लपेटे हुए एक बड़ का वृक्ष है। इस स्थान पर निम्नांकित मूर्तियां है।
(1) सिद्धायनी और मातंगयक्ष सहित वर्द्धमान (2) अम्बिका यक्षी और सर्वाह यक्ष खड्गासन (3) चक्रेश्वरी आदिनाथ (4) द्वारपाल, (5) यक्ष यक्षी वर्द्धमान (6) वर्द्धमान (7) पार्श्वनाथ (8) नैमिनाथ (9) शिव, यक्ष श्रेयासनाथ (10) त्रिमुख यक्ष संभवनाथ (11) त्रिमुखयक्ष (12) धर्मचक्र गौमुख यक्ष और चक्रेश्वरी।
शीतलामाता का मंदिर : यहां चक्रेश्वरी, गौरी यक्ष, नेमिनाथ की यक्ष यक्षी (अम्बिका)। आदिनाथ, वर्द्धमान की खड्गासन मूर्तियां, शीतलनाथ की यक्षी माननी, पार्श्वनाथ, किसी तीर्थंकर का मस्तक तथा अनेक शिलापट्ट जो एक चबूतरे में जड़े हुए हैं उन पर तीर्थंकरों की मूर्तियां अंकित है, एक तीर्थंकर मूर्ति का ऊपर का भाग जिसमें सुरपुष्पवृष्टि प्रदर्शित है तथा वर्द्धमान की मूर्ति है।
(5) हरिजनपुर : यह एक नया मंदिर है जिसकी दीवारों पर नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, सुमतिनाथ और मातंग यक्ष की आकृतियां अंकित है। ___(6) चमरपुरी की मात : यह एक प्राचीन टीला है। यहां इमली के वृक्ष के नीचे जैन मूर्तियां दबी हुई है। 12 फुट की एक विशाल तीर्थकर मूर्ति चमरेन्द्रो सहित सम्भवतः वर्द्धमान की है। नैमिनाथ और अम्बिका की मूर्तियां भी है।
(7) गंधर्वसेन का मंदिर : इस मंदिर में एक प्रस्तरखण्ड पर पार्श्वनाथ को उपसर्ग के बाद केवलज्ञान प्राप्ति का दृश्य अंकित है। यह प्रस्तर खण्ड दसवी शताब्दी से पूर्व और परगुप्तकालीन मालूम होता है। इसके अतिरिक्त वर्द्धमान और आदिनाथ की मूर्तियां हैं।
गंधावल की ही कुछ महत्त्वपूर्ण प्रतिमाओं का उल्लेख इस प्रकार किया जाता है:
(1) तीर्थंकर प्रतिमा : गंधावल की प्रतिमाओं में तीर्थंकर की यह विशाल प्रतिमा जो लगभग साढ़े ग्यारह फुट ऊंची है, अपना विशेष स्थान रखती है। प्रस्तुत प्रतिमा में जो यद्यपि अत्यधिक खण्डित है, जैन प्रतिमा की प्रायः सभी विशेषताओं का अत्यन्त कलात्मक ढंग से समावेश कर कुशल कलाकार ने अपनी कार्य चतुरता का परिचय दिया है। प्रशान्त मूर्ति के वक्षस्थल पर श्रीवत्स प्रतीक है।
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