Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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उनके यक्ष की है। अम्बिका की गोद का बालक, सवारी का सिंह और उनके गले में वैजयंतिमाल स्पष्ट दृष्टव्य है। दाहिनी ओर आदिनाथ की देवी चक्रेश्वरी की ललितासन चतुर्भुज सुन्दर मूर्ति है। इसके हाथों के चक्र दर्शनीय बन पड़े हैं। पार्श्व में इनका यक्ष गोमुख भी अपने आयुध में और वाहन के साथ अंकित है। इस यक्ष युगल के ऊपर एक अन्य यक्षिणी मूर्ति दो हाथ ऊंची अष्टभुजी खड़ी हुई बनी है जो अपने रूप सज्जा और अनुपात के कारण अत्यन्त सुन्दर और मनोहारिणी लगती है। शरीर का त्रिभंग तो दर्शनीय है। हाथों में अक्षमाला, तूणीर, नागपाश, शंख, अंकुश, धनुष तथा श्रीफल धारण किये हुए इस प्रतिमा के अलंकरण में पगपायल, कटिबंध, हार, कुण्डल, भुजबन्ध, मणिवलय, मोहनमाला, वैजयंतिमाला तथा जटामुकुट आदि सब स्व स्थान पर अंकित हैं। मूर्ति का एक दाहिना हाथ खंडित है तथा दोनों ओर नारियल से ढके हुए कलश स्थापित है जो मंगल प्रतीक है। 55
___गर्भगृह में तीनों चक्रवर्ती तीर्थंकरों शांति, कुंथु और अरहनाथ की विशाल पीठिका में सं.1236 फाल्गुन सुदि 5 प्रतिष्ठापितम यह लेख अंकित है। सिंहासन के बीच में धर्मचक्र तथा दोनों ओर क्रमशः गज, सिंह, अश्व आदि का अंकन है। तीनों प्रतिमाओं के सिंहासन पृथक्-पृथक् हैं। ,
बड़ी मूर्ति के नीचे शासनदेवी की छवि भी अंकित है। परन्तु उस पर पोते गये सिन्दूर के कारण उसका स्वरूप अस्पष्ट हो गया है। इन प्रतिमाओं की एक विशेषता यह है कि इन तीनों में अपने-अपने चिहों के अतिरक्त हिरण का अंकन भी पाया जाता है। मूर्तियों के गले की रेखाएं तथा उदर भाग की त्रिबली का उभार साधारण से कुछ अधिक लगता है तथा श्रीवत्स का अंकन अत्यधिक उभार के कारण अपनी उत्तर मध्यकालीन कला का सही प्रतिनिधित्व करता है। प्रतिमाओं के दोनों ओर हाथी पर खड़े हुए चमरधारी इन्द्रों का अंकन है। ऊपर की
ओर पुष्पमाला, हाथ में लेकर उड़ते हुए विद्याधर दोनों मूर्तियों में है, परन्तु बड़ी प्रतिमा में इनका अभाव है। छत की पद्म शिला से स्पष्ट होता है कि वहां तक यह मंदिर अपनी आदि स्थिति में ही अवस्थित है।
इस मंदिर की एक अन्य उल्लेखनीय विशेषता इसमें प्राप्त चौबीसी की वे कतिपय प्रतिमाएं हैं जो अपनी पीठिका में अंकित शासनदेवी मूर्तियों के कारण अपना अति विशिष्ट स्थान रखती है। ये मूर्तियां केवल छः है, शेष नष्ट हो गई प्रतीत होती है। एक हाथ ऊंची इन सभी प्रतिमाओं का आकार, प्रकार, गठन, सज्जा और परिकर प्रायः समान है और इनमें चिह भी अंकित नहीं किये गये हैं परन्तु शासन देवियों के कारण इनकी निश्चित पहिचान बहुत आसान है। सभी
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