Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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तीर्थ क्षेत्र लक्ष्मणी में एक खेत में से 14 मूर्तियां मिली। इन मूर्तियों में से कुछ प्रतिमाओ का वर्णन इस प्रकार है.
चरमतीर्थाधिपति महावीर स्वामी की 32 इंच बड़ी प्रतिमा सर्वांग सुन्दर श्वेतवर्ण वाली है। उसके ऊपर लेख नहीं है। परन्तु प्रतिमा प्राचीन जान पड़ती है। अजीतनाथ प्रभु की 15 इंच बड़ी प्रतिमा बेलू रेती की बनी हुई दर्शनीय एवं प्राचीन है।
पद्मप्रभु की प्रतिमा 37 इंच बड़ी है। वह भी श्वेतवर्णी परिपूर्णांग है, इस प्रतिमा का लेख मंद पड़ जाने से 'संवत् 1013 वर्ष वैशाख सुदि सप्तभ्यां केवल इतना ही पड़ा जाता है। मल्लिनाथ एवं नेमिनाथ की 26 इंच बड़ी प्रतिमाएं भी उसी समय की प्रतिष्ठित प्रतीत होती है। इस लेख से इन तीनों प्रतिमाओं की प्राचीनता सिद्ध हो जाती है।
आदिनाथ की 27 इंच और ऋषभदेव स्वामी की 13-13 इंच बड़ी बादामी वर्ण की प्रतिमाएं कम से कम 700 वर्ष प्राचीन प्रतीत होती है। साथ ही तीनों प्रतिमाएं एक ही समय की लगती है। आदिनाथ स्वामी की प्रतिमा पर जो लेख उत्कीर्ण है वह इस प्रकार है
'संवत 1310 वर्ष माघ सुदि 5 सौम दिन प्राग्वाट ज्ञातीय मंत्री गोसल तस्य चि.मंत्री गंगदेव तस्य पत्नी गांगदेवी तस्य पुत्र मंत्री पदम तस्य भार्या मांगल्या प्र.।'
शेष पाषाण प्रतिमाओं के लेख बहुत ही अस्पष्ट हो गये हैं। परन्तु उनकी बनावट से जान पड़ता है कि ये प्रतिमाएं भी पर्याप्त प्राचीन है। उपर्युक्त प्रतिमाएं प्राप्त होने के उपरांत पार्श्वनाथ स्वामी की एक छोटीसी धातु प्रतिमा चार अंगुल की निर्गत हुई इसके पृष्ठ भाग पर लिखा है कि
'संवत् 1303 आ.शु. 4 ललित सा.' ___ बजरंगगढ़ जिला गुना के दिगम्बर मंदिर की प्रतिमाएं भी उल्लेखनीय है। इस मंदिर का निर्माणकाल यहां के अवशेषों की कला और मूर्ति लेखों से तेरहवीं शताब्दी का प्रारम्भ माना जा सकता है।
इस मंदिर के द्वार तोरण पर दोनों ओर दो-दो हाथ ऊंची खड्गासन प्रतिमाएं अवस्थित है। इन पर कुछ लेख भी अंकित है जो अत्यन्त अस्पष्ट हो जाने से पढ़े नहीं जाते हैं। शासन देवियों के द्वारा ये तीर्थंकर पहिचाने जा सकते हैं। इस तोरण में आदि मंगल स्वरूप आदिनाथ का भी मनोहर अंकलन है। परिक्रमा में बाह्यभित्ति पर बायीं ओर एक खड़ा हुआ यक्ष तथा अर्द्ध पर्यंक आसन बैठी हुई यक्षी प्रतिमा है। पीछे की ओर एक चतुर्भुजी यक्षिणी है, जिसके हाथों में कमल, नागपाश, कमण्डलु और अभयमुद्रा है। इसी के ऊपर एक अस्पष्ट चक्र तथा नवग्रह बने हैं। दोनों ओर दो-दो हाथ ऊँची दो मूर्तियां देवी अम्बिका और
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