Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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है। इस प्रकार सम्पूर्ण गुप्तकालीन मालवा में जैनधर्म का अच्छा विकास हो रहा था जिसके परिचायक प्राप्त होने वाले ये पुरातात्विक अवशेष हैं।
राजपूत काल : राजपूतकालीन मालवा में जैन कलावशेषों की संख्या बहुत अधिक है। ग्वालियर के प्राचीन दुर्ग में जैन तीर्थंकरों की विशालकाय प्रतिमाओं का निर्माण इसी काल में हुआ। इनमें से कुछ कायोत्सर्ग मुद्रा में उकेरी गयी है अन्य पद्मावती पर ध्यान मुद्रा में। यहां अनेक सर्वतोभद्र प्रतिमाएं भी मिली हैं। पद्मावती, नरवर, चन्देरी उज्जैन आदि से मध्यकालीन जैन अवशेष बड़ी संख्या में मिले हैं। बरो या (बड़-नगर) नामक स्थान पर जैन मंदिरों का एक समूह दर्शनीय है। इस मंदिर समूह के बाहर नेमिनाथ की यक्षिणी अम्बिका की एक छः फुट ऊंची मूर्ति रखी है। मंदिर शिखर शैली के हैं और इनका निर्माण परमारों के शासनकाल में हुआ। तीर्थंकरों की अनेक प्रतिमाएं यहां बाद में रखी गई। कुछ मंदिरों के प्रवेश द्वार अत्यन्त आकर्षक हैं। द्वार स्तम्भों पर गंगा यमुना की मूर्तियां बनी है। जैन मंदिर समूह के पीछे शिव, सूर्य, लक्ष्मी, भैरव, नवग्रह आदि की अनेक मूर्तियां लगी हैं। विदिशा जिले का महत्त्वपूर्ण स्थान ग्यारसपुर है। यहां पहाड़ी के ऊपर अनेक हिन्दू मंदिर बने हैं। कलादेवी के मंदिर में यक्षिणी अम्बिका तथा तीर्थंकरों की कई प्रभावोत्पादक प्रतिमाएं हैं। 48
इस समय का जैन मूर्तियों की दृष्टि से एक और महत्त्वपूर्ण स्थान गंधावल या गंधर्वपुरी है। यह स्थान देवास जिले की सोनकच्छ तहसील में लगभग 5-6 मील उत्तर की ओर एक छोटी नदी के तट पर स्थित है। यहां जैन तथा हिन्दू दोनों ही धर्मों के देवालयों के अवशेष प्राप्त होते हैं। इस स्थान पर उपलब्ध जैन प्रतिमाओं का परिचय नीचे दिया जाता है।
(1) भवानी मंदिर : यह जैन मंदिर 10वीं शताब्दी का है। यहां चरणेन्द्र पद्मावती सहित पार्श्वनाथ धर्मचक्र सहित और सिंहलाञ्छन और मातंग यक्ष तथा सिद्धायनी यक्षिणी सहित एक खण्डित महावीर स्वामी का पादपीठ दशमी शताब्दी का है। प्रथम तीर्थंकर की यक्षिणी चक्रेश्वरी सिद्धायनी सहित वर्द्धमान, पार्श्वनाथ की मूर्ति के ऊपरी भाग में है। द्वारपाल, एक शिलापट्ट तीर्थंकरों का विद्यादेवियों सहित, देवियां कुण्डिका सहित प्रदर्शित की गई है। छत के शिलाखण्ड की चौकोर वेदी में कीर्तिमुख प्रदर्शित किये गये है। खड्गासन में वर्द्धमान प्रतिमा
और उसके ऊपर पार्श्वनाथ की मूर्ति स्तम्भ पर अंकित है। खड्गासन वर्द्धमान चमरेन्द्र तथा छत्र त्यादि प्रतिहार्यों सहित। एक शिलापट्ट चौबीस तीर्थंकरों सहित। शांतिनाथ, इसके नीचे दानपति और प्रतिष्ठाचार्य भी प्रणाम करते हुए प्रदर्शित किये गये हैं। शांतिनाथ हस्तिपदारूड़, चतुर्भुज इन्द्र, पद्ममप्रभु, सुमतिनाथ,
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