Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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तोरण भी मंदिर का वही प्राचीन तोरण है जो मंदिर के साथ बनाया गया था। इन अवशेषों की कला से और मूर्ति लेखों से इस मंदिर का निर्माणकाल तेरहवीं शताब्दी का आरम्भ माना जा सकता है।
इस युग के अनेक और भी जैन मंदिरों के उल्लेख मिलते हैं तथा अनेक ग्रामों में मंदिरों के अवशेष भी मिलते हैं। कई मंदिरों की प्राचीनता उनके पनर्निर्माण के परिणामस्वरूप लुप्त हो गई है।
- जैन मूर्तिकला : जैन प्रतिमाओं का आविर्भाव जैनों के तीर्थंकरों से हुआ। तीर्थंकरों की प्रतिमाओं का प्रयोजन जिज्ञासु जैनों में न केवल तीर्थंकरों के पावन जीवन धर्म प्रचार और कैवल्य प्राप्ति की स्मृति ही दिलाना था, वरन तीर्थंकरों के द्वारा परिवर्तित पथ के पथिक बनने की प्रेरणा भी।
जैन प्रतिमाओं की विशेषताएं : तीर्थंकरों की प्रतिमोभावना में वराहमिहिर की वृहत्संहिता के निम्नांकित वक्तव्य में जैन प्रतिमा की विशेषताओं का उल्लेख मिलता है।
' आजानुलम्बबाहुः श्रीवत्साइक प्रशान्त मूर्तिश्च।
दिग्वास्सास्तरुणों सषवाश्य कार्योऽहेतां देवः।। अर्थात् तीर्थंकर विशेष की प्रतिमा प्रकल्पन में लम्बे लटकते हुए हाथ, श्री वत्स लाछन, प्रशान्तमूर्ति, नग्न शरीर, तरुणावस्था ये पांच सामान्य विशेषताएं हैं। इनके अतिरिक्त दक्षिण एवं वाम पार्श्व में क्रमशः एक यक्ष और एक यक्षिणी का भी प्रदर्शन आवश्यक है। तीसरे अशोक वृक्ष (अथवा आम्रवृक्ष जिसके नीचे बैठकर 'जिन' विशेष ने ज्ञान प्राप्त किया) के साथ अष्टप्रातिहार्यो दिव्य तरु, आसन, सिंहासन तथा आतपत्र, चामर, प्रभामण्डल, दिव्यदुन्दुभि, सुरपृष्पवृष्टि एवं दिव्यध्वनि) में से किसी एक का प्रदर्शन भी विहित है।28.
जैन देवों के विभिन्न वर्ग : 'आचार दिनकर के अनुसार जैनों के देव एंव देवियों की तीन श्रेणियां हैं:- (1) प्रासाद देवियां (2) कुल देवियां (तांत्रिक देवियां) तथा (3) सम्प्रदाय देवियां। यहां यह स्मरण रहे कि जैनों के दो प्रधान सम्प्रदायों दिगम्बर एव श्वेताम्बर के देवताओं एवं देवियों की एक परम्परा नहीं है। तान्त्रिक देवियां श्वेताम्बर सम्प्रदाय की विशेषता है।
जैनों के प्राचीन देववाद में चार प्रधान वर्ग हैं:- (1) ज्योतिषी (2) विमानवासी (3) भवनपति तथा (4) व्यन्तर।
जैनधर्म में सभी तीर्थंकरों की समान महिमा है। जैन प्रतिमाओं की दूसरी विशेषता यह है कि जिनो के चित्रण में तीर्थंकरों का सर्वश्रेष्ठ पद प्रकल्पितहोता
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