Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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आये सो उनने उपदेश देकर धर्म में स्थापना करी, सो सत्तावीस गोत्र काष्ठा संघी हुए। संवत् 142 आसोज सुदी 14 मंगलवार को। संवत् 1241 अलिबर्दन पातस्याह के समय में चित्तौड़ में राणा रतनसिंह चौहान का कामदार पूनाजी खटोड़ था, उसने 350 घर लेकर दक्षिण में आया। एक दूसरे भाट की पौथी से उल्लेख डॉ.जोहरापुरकर इस प्रकार करते हैं- "बलिभद्र राजा का पिता बाग नामक था तथा बलिभद्र के पुत्र वरुणकुवर के 52 पुत्रों से 52 गोत्र स्थापित हुए, बघेरा गांव के पास इनकी सेना में मरी का प्रकोप हुआ, तब रामदास भाट की सलाह से वे लोग समीप ही निवास करते हुए मुनि उमास्वामी, लोहाचार्य, विद्यानंद, रामसेन व नेमसेन की शरण में पहुंचे, उनके मंत्र बल से रोग शांत हुआ, तब से वे सब लोग जैनधर्म में दीक्षित हुए तथा रामदास के वंशजों को उनका कुल वृत्तांत संग्रहित करने का काम सौंपा गया।
भाटों की अनुश्रुतियां तथा पद्यों में इस जाति के व्यक्तियों की जो प्राचीन तिथियां दी है वे कल्पित ही मालूम पड़ती है, क्योंकि अन्य साधनों से उनका कोई समर्थन नहीं होता। संवत् 142 में काष्ठा संघ का अस्तित्व इसमें बतलाया गया है वह तो स्पष्ट रूप से इतिहास विरुद्ध है क्योंकि काष्ठासंघ की स्थापना सं.753 में हुई ऐसा दर्शनसार में वर्णन है तथा इसके शिलालेखीय उल्लेख तो बारहवीं सदी से ही मिलते हैं। किन्तु इन अनुश्रुतियों में कुछ बातें वास्तविक भी है। बघेरवाल जाति में 52 गोत्र में 25 मूलसंघ के तथा 27 काष्ठा संघ के अनुयायी थे। इस बात का समर्थन विक्रम की अठारहवीं सदी के लेखक नरेन्द्रकीर्ति के एक पद्य से होता है। यथा'3.
.श्रीकाष्ठासंघ नाम प्रथम गोत्र पंचबीस।
मूलसंघ उपदेश गोत्र अंत सताबीस।। बघेरवाल बद्रजाति गोत्र बावण गुण पूरा।
धर्मधुरंधरधीर परम जिन मारग सूरा।। • महधारक भट्ठारक श्री लक्ष्मीसेनय जानिये।
गुरु इन्द्रभूषण गंगसम सुगुण नरेन्द्रकीर्ति बखाणिये।। इस जाति के लोग मूलतः राजपूत क्षत्रिय थे तथा बाद में जैनधर्म में दीक्षित हुए थे, इसका भी एक समर्थक प्रमाण है। इस जाति में प्रतिवर्ष चैत्र सु.8 तथा आश्विन सु.8 को कुलदेवी का पूजन किया जाता है जिसे दिन्हाड़ी पूजन कहते हैं। इस समय यद्यपि साधारण बघेरवाल अपने कुल देवता को पद्मावती, चक्रेश्वरी या अम्बिका यह नाम देता है तथापित भाटों के कथनानुसार (इन देवियों के नाम) बवरिया गोत्र की देवी चन्द्रसेन है, ठोल्या गोत्र की देवी चामुण्डा
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