Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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नहीं करते था मंदिर में मिठाई भी वितरित नहीं करते। पूजन करते समय ये खड़े रहते हैं, बैठते नहीं। ये भट्टारकों को अपना धर्मगुरु नहीं मानते।" इसकी स्थापना पं.अमरचंद बड़जात्या के द्वारा की गई। ये तेरापंथी समाज सुधारक प्रतीत होते हैं, क्योंकि इन्होंने जैनधर्म की अनेक रूढ़िगत परम्पराओं का विरोध इस आधार पर किया कि ये वास्तविक जैनधर्म से सम्बन्धित नहीं है। भट्टारकों के आचार एवं व्यवहार में शिथिलता आ जाने के विरोध में इस सम्प्रदाय का उदय वि.सं.1683 में हुआ।
(2) तारण संघ : तारण पंथ के प्रवर्तक तारण स्वामी थे। तारण स्वामी का जन्म पुहुपावती नगरी में सन् 1448 में हुआ था। तारण स्वामी के पिता का नाम गढ़ासाव था। वे दिल्ली के बादशाह बहलोल तोदी के दरबार में किसी पद. पर कार्य करते थे। बाद में किसी कारण से वे दिल्ली छोड़कर पुहुपावती नगरी में बस गये। वे बाल्यकाल से ही बड़े होनहार दिखाई देते थे। इनकी स्मरणशक्ति बहत तीव्र थी और शिक्षा श्री श्रुतसागर मुनि के पास हुई। थोड़े ही समय में इन्होंने बहुत से ग्रन्थों का अध्ययन कर लिया। इन्हें धर्म के बाह्य आडम्बर पसन्द नहीं थे। यही कारण है कि इन्होने मूर्तिपूजा का विरोध किया।
ताराण स्वामी के उपदेश : तारण स्वामी का कहना था कि यदि हृदय पवित्र भावना से रिक्त है तो जड़ पूजा से क्या लाभ? वास्तव में आत्मा ही सब
कुछ है।
उनका कहना था कि जैनधर्म समस्त प्राणियों के लिये स्थान हैं, वह सबका कल्याण करने वाला है। भगवान् महावीर के समवशरण में पुश-पक्षियों तक को स्थान था। सत्वैषु-मैत्री का पाठ पढ़ाने वाले जैनधर्म में ऊंच-नीच का भेद कभी भी नहीं हो सकता। यहां तक कि इस पंथ में मुस्लिम सम्प्रदाय के व्यक्तियों ने भी दीक्षा ग्रहण की थी। तारण स्वामी का प्रमुख शिष्य रूई रमण मुसलमान था। इस पंथ के मानने वाले मूर्ति पूजा न करके ग्रन्थ पूजा करते हैं और इस रीति में यह सिख धर्म के समान हैं जिसमें गुरु ग्रन्थ साहब की पूजा होती है। तारण पंथ के प्रमुख सिद्धान्त इस प्रकार हैं:
(1) मूर्ति पूजा का विरोध । (2) जाति विभेद पर प्रतिबंध (3) सांसारिक, धार्मिक विश्वासों एवं पम्पराओं को दूर करना। .
ऐसा प्रतीत होता है कि तारण स्वामी ने अपने ये सिद्धान्त इस्लाम धर्म की नीतियों एवं लोकाशाह के सिद्धानत के प्रभाव में आकर प्रतिपादित किये। तारण संघ का एक दूसरा नाम सामैय पंथ भी कहा जाता है। मालवा में ही
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