Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
View full book text
________________
उन्होंने जाति में विधवा विवाह का नियम स्वीकार करने का दबाव डाला। एक नगर में जिसका नाम राम था, इन दोनों भाइयों ने एक विशाल भोज का आयोजन किया तथा उसमें समस्त ओसवालों को आमंत्रित किया। वहां के आसेवलों को इन दोनों भाईयों के जन्म की कथा ज्ञात नहीं थी। इस कारण सभी ओसवाल भोज में सम्मिलित होने के लिये निर्धारित स्थान पर एकत्र हो गये । जब भोजन प्रारम्भ होने वाला था तभी एक विधवा ओसवाल का पुत्र आया और उसने अपनी माता के पुनर्विवाह करने की आज्ञा चाही। तब वहां उपस्थित समुदाय ने कहा कि ऐसी बात करने के लिये उसने यहां आने का साहस क्यों किया? इस पर उसने कहा कि जिनके यहां आप भोजन कर रहे हैं, वे एक ऐसी ही विधवा के पुत्र हैं जिसने विधवा होने के उपरांत विवाह किया था। इस पर समस्त उपस्थित समुदाय में उत्तेजना एवं रोष फैल गया। जिन व्यक्तियों ने भोजन छू लिया था, वे उन दो भाइयों के अनुगामी बनकर दसा ओसवाल कहलाये तथा जिन्होंने भोजन छुआ नहीं था और जो शुद्ध रहे थे बे बीसा ओसवाल कहलाये। ये जो नाम बीसा और दसा पाये जाते हैं, ये जाति के उपभेद हैं तथा जो संज्ञा बीसा या बीस और दसा या दस दी गई है, वह शुद्ध तथा अर्द्धशुद्ध रक्त से संयुक्त प्रतीत होती है । '
बीसा और दसा उपभेद के अतिरिक्त पांचा, अठैया आदि भेद भी मिलते हैं जिनका सम्बन्ध भी शुद्धता से ही प्रतीत होता है। पांचा अपनी जाति में विधवा विवाह की अनुमति देते हैं। इनसे जो निम्न हैं वे अठैया कहलाये हैं। अन्य जातिगत विवाहों में कोई बन्धन नहीं है। उदाहरण के लिये दिगम्बरी ओसवाल श्वेताम्बरी लड़की से विवाह कर सकता हे तथा जैन ओसवाल वैष्णव ओसवाल की लड़की से विवाह कर सकता है। इन्दौर राज्य के इतिहास से यह विदित होता है कि यहां ओसवाल जाति के व्यक्ति उच्च पदों पर कार्यरत थे और उन्होंने वीरता एवं सम्मानपूर्वक जनता की सेवा की। आज भी मालवा में ओसवाल जाति के व्यक्तियों का बाहुल्य है तथा वे व्यापार एवं शासकीय सेवा में रहकर प्रदेश की सेवा में लगे हुए हैं।
ओसवालों के गोत्रों को देखने से विदित होता है कि ये गोत्र किसी न किसी आधार को लेकर बने हैं। गोत्रों के जो आधार हैं, उनको निम्नानुसार विभक्त किया जा सकता है। यथा:- (1) स्थान के आधार पर गोत्र (2) उद्योग या व्यवसाय के आधार पर गोत्र (3) व्यक्ति के नाम के आधार पर गोत्र । आदि आदि । (2) श्रीमाली : श्रीमाली जैनियों की उत्पत्ति मारवाड़ के श्रीमाल नगर से मानी जाती है जिसे भिनमाल भी कहते हैं इस जाति की उत्पत्ति के विषय में दो
44
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org