Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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- मालवा में इस संघ का अस्तित्व कब से है? इस संबंध में निश्चयात्मक रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
(4) माथुर संघ : ऐसा कहा जाता है कि यह काष्ठा संघ की एक शाखा और मथुरा में रामसेन ने विक्रम संवत् 953 में इसकी नींव डाली। दर्शनसार के कर्ता देवसेन के अनुसार इसकी उत्पत्ति काष्ठा संघ की स्थापना के दो सौ वर्ष पश्चात् रामसेन के द्वारा की गई।
मालवा में माथुर संघ का प्राचीनतम उल्लेख बदनावर से प्राप्त संवत् 1210 की एक प्रतिमा लेख में मिलता है। लेख इस प्रकार है-- .
- संवत् 1210 वर्ष वैसाख सुदी 1 सुक्रे श्रीमाथुर संघे त्वायवासे कुमारसेन सिसवधु भरी जस हसता जयकार कारित।।
एक दूसरा प्रतिमा लेख संवत् 1228 का इस प्रकार है:- संवत् 1228 वर्ष पालगुन सुदी 5। सनैः श्री मन्माथुर संघे पंडिताचार्य श्री धर्मकी तस्य शिष्य आचार्य ललितकीर्ति प्रण।।
संवत् 1234 के लेख में बदनावर (वर्द्धमानपुर) का स्पष्ट उल्लेख है। यथा- शिष्य ललितकीर्तिः। वर्द्धमान पुरान्वये सा. प्रामदेव भार्या प्राहिणासुत राणू केलू चालू सा. महण भार्या रूपिणी सुत नेमी धांधा बीजा यमदेवः बयाराम देव सिरीचंद रादर प्रणमति नित्यं।।
इस प्रकार 11वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में माथुरसंघ का अस्तित्व मालवा में था और इसकी कीर्ति बढ़ रही थी।
मालवा में दिगम्बर भट्टारकों की गादियां रही हैं। किन्तु उन सब की पट्टावलियां उपलब्ध नहीं होती। जेरहट शाखा की जो पट्टावलि मिलती है वह पर्याप्त बाद की है। उज्जैन की गादी की जो पट्टावलि मिलती है वह इस प्रकार
(1) महाकीर्ति (सन् 629) (2) विष्णुनन्दि (सन् 647) (3) श्रीभूषण (सन् 669) (4) श्रीचन्द्र (सन् 6787) (5) श्रीनन्दि (692) (6) देशभूषण (708) (7) अनन्तकीर्ति (708) (8) धर्मनंदि (728) (9) विद्यानंदि (751) 110) रामचन्द्र (783) (11) रामकीर्ति (790) (12) अभयचन्द्र (8214) (13) नरचन्द्र (840) (14) नागचन्द्र (856) (15) हरिनन्दि (882) (16) हरिचन्द्र (891) (17) महीचन्द्र (18) माघचन्द्र (933) (19) लक्ष्मीचन्द्र (966) (20) गुणकीर्ति (970) (21) गुणचन्द्र (991) (22) लोकचन्द्र (1009) (23) श्रुतकीर्ति (1022) (24) भावचन्द्र (1037) (25) भट्टीचन्द्र (1058)148
इन भट्टारकों के विषय में अन्य कोई जानकारी नहीं मिलती।
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