Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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क्योंकि जैनधर्म में अनेक भद्रबाहु हुए हैं।
(3) अंगों में वस्त्र धारण करने के जो नियम हैं, उनसे यह अनिवार्य नहीं लगता कि नग्न ही रहा जाय। उसमें शरीर के प्रति मोह न करने पर जोर दिया गया है।
(4) जिनकप्पी भी वस्त्रों का उपयोग करते थे। हानले दिगम्बरत्व के विचार में आजीविकों का प्रभाव मानते हैं। 18. दिगम्बर-श्वेताम्बर में मतान्तर :दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों के मत में मुख्य रूप से निम्नानुसार अन्तर
(1) दिगम्बर मतावलम्बियों का यह विश्वास है कि जिस साधु के पास सम्पत्ति है अर्थात् जो वस्त्र धारण करता है, वह मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता, जबकि श्वेताम्बर मतवालों का कहना है कि मोक्ष के लिये पूर्ण नग्नता अनिवार्य 'नहीं है। .
(2) दिगम्बर मतावलम्बी कहते हैं कि वर्तमान जीवन में नारी मोक्ष की पात्रता नहीं रखती। इसके विपरित श्वेताम्बर मतावलम्बियों का विश्वास है कि वर्तमान जीवन में स्त्री निर्वाण प्राप्त कर सकती है।
(3) दिगम्बर मतावलम्बियों के अनुसार साधु जब एक बार 'केवलज्ञान' या 'सर्वज्ञान प्राप्त कर लेता है, तब उसे भोजन की आवश्यकता नहीं रहती। वह अपने जीवन को बिना भोजन किये स्थिर रख सकता है। श्वेताम्बर मतावलम्बी इस सिद्धानत को नहीं मानते।
इन उपर्युक्त मतवैभिन्य को यदि छोड़ भी दें तो भी निम्नांकित बिन्दु ऐसे हैं जिन पर दोनों सम्प्रदाय वाले सहमत नहीं हैं:
(1) दिगम्बर मतावलम्बी मानते हैं कि भगवान महावीर पहले ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी देवनंदा के गर्भ में अवतरित हुए थे, जबकि श्वेताम्बर मतावलम्बी उनको त्रिशला नाम की स्त्री से जन्म लेने की परम्परा पर दृढ़ हैं।
(2) दिगम्बर मतावलम्बी समस्त प्राचीन पवित्र साहित्य को छिपा रखने में विश्वस करते हैं किन्तु ऐसा श्वेताम्बर मतावलम्बी नहीं मानते।
(3) दिगम्बर मत वाले मानते हैं कि महावीर का कभी विवाह ही नहीं हुआ था, किन्तु श्वेताम्बर मतावलम्बी महावीर का विवाह यशोदा के साथ और उससे अनोज्जा या प्रियदर्शना नामक एक पुत्री का जन्म मानते हैं।
___(4) श्वेताम्बर मतावलम्बी 19वें तीर्थंकर मल्लीनाथ को नारी मानते हैं, जबकि दिगम्बर मतवाले मल्लीनाथ को पुरुष मानते हैं। 128
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