Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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(1) नमः सिर्द्धभ्यः (II) श्री संयुतानां गुणतांयधीनां गुप्तान्वयानां नृपसक्ष्मानाम। (2) राज्ये कुलस्याधि विवर्धमाने षडभियुतैवर्षशतेधमासे (II) सुकार्तिके बहुल
दिनैथ पचमे। गुहामुखे स्फट विकटोत्घटामिमां जिताद्विषां जिनकर पार्श्वसंज्ञिका, जिनाकृति शम-दमवान। चीकरत (II) आचार्यभद्रान्वय भूषणस्य शिष्यो ह्यसावार्य कुलो द्वतस्य, आचार्य गोश। र्म मुनस्षुतस्तु पद्मावताश्वपतेर्भटस्य (II) परे रंजयस्य रिपुघ्न मानिनस्ससंघिल। स्यैतित्यभिविश्रुतो भुवि स्वसंज्ञया शंकर नाम शब्दितो विधान युक्तं
यतिमार्गमस्थितः (II)। (7) सउत्तराणां सदो कुरुणां उद्ग दिशा देशवरे प्रसूतः। (8) क्षयाय कारि गणस्य श्वीमान् यदत्र पुण्यं तद पास-सर्जा (II)
__अर्थात् 'सिद्धों के नमस्कार श्री संयुक्त गुण समुद्र गुप्तान्वय के श्रेष्ठ राजाओं के वर्द्धमान राज्य शासन के 106 वे वर्ष और कार्तिक महिने की कृष्ण पंचमी के दिन गुहा द्वार में विस्तृत सर्पफण से युक्त शत्रुओं को जीतने वाले जिन श्रेष्ठ पार्श्वनाथ जिनकी मूर्ति शम-दमवान शंकर ने बनवाई जो आचार्य भद्र के अन्वय का भूषण और आर्य कुलोत्पन्न गौशर्म मुनि का शिष्य तथा दूसरों द्वारा अजेय रिपुन मानी अश्वपति भट्ट संघिल और पद्मावती के पुत्र शंकर इस नाम से लोक में विश्रुत तथा शास्त्रोक्त यतिमार्ग में स्थित था और वह उत्तर कुरुवों के सदृश उत्तर दिशा के श्रेष्ठ देश में उत्पन्न हुआ था, उसके इस पावन कार्य में जो पुण्य हुआ हो वह सब कर्मरूपी शत्रु समूह के क्षय के लिये हो। अभिलेख में वर्णित आचार्य भद्रं और उनके अन्वय के प्रसिद्ध मुनि गौशर्म के विषय में अभी कुछ-भी ज्ञात नहीं है फिर भी. इतना इनके विषय में निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ये युगप्रधान आचार्य थे। ___इस युग की जैनधर्म सम्बन्धी एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि अभी हाल में हुई है। प्रो.कृष्णदत्त वाजपेयी ने अपने एक लेख 'रामगुप्त के शिलालेखों की प्राप्ति'28 में विदिशा के समीप बैस नदी के तटवर्ती एक टीले की खुदाई करते समय प्राप्त गुप्तकालीन जैन तीर्थंकरों की दुर्लभ तीन प्रतिमाओं पर प्रकाश डाला है। ये तीनों प्रतिमाएं बलुए पत्थर की बनी है। इन तीनों की चरण चौकियों पर गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि तथा संस्कृत भाषा में लेख उत्कीर्ण थे। एक मूर्ति का लेख तो पूर्णतः नष्ट हो चुका है। दूसरी मूर्ति का लेख आधा बचा है और तीसरी का लेख पूरा
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