Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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ही साथ उनके अवशेष मिलते हैं, ठीक उसी प्रकार इस युग में अनेक जैन विद्वान भी हो चुके हैं उन्होंने अपनी विद्वता से परमार काल के गौरव को बढ़ाया है, उनमें से आचार्य देवसेन, आचार्य महासेन, अमितगति जिनसेनाचार्य, माणिक्यनंदी नयनंदी, प्रभाचन्द्र, आशाधर, श्रीचन्द्र, कवि धनपाल तथा कवि दामोदर आदि प्रसिद्ध हैं। परमारकालिन जैनधर्म तथा सारस्वती के दृष्टिकोण से डॉ.ज्योतिप्रसाद जैन* का कथन है कि मुंज के सम्बन्ध में प्रबन्ध चिंतामणि आदि जैन ग्रन्थों में अनेक कथायें मिलती हैं। नवसाहसांक चरित के लेखक पद्मगुप्त, दशरूपक के लेखक धनंजय, उसके भाई धनिक जैन कवि धनपाल आदि अनेक कवियों का वह आश्रय-दाता था। जैनाचार्य महासेन और अमितगति का यह राजा बहुत सम्मान करता था। इन जैनाचार्यों ने उसके प्रश्रय में अनेक ग्रन्थों की रचना की। मुंज स्वयं जैनी था या नहीं यह नहीं कहा जा सकता किन्तु वह जैनधर्म का प्रबल पोषक था, इसमें संदेह नहीं है। उसका उत्तराधिकारी और भाई सिंघल या सिंधुराज कुमारनारायण नवसाहसांक (996-1006 ई.) भी जैनधर्म का पोषक था। प्रद्युम्नचरित के कर्ता मुनि महासेन का गुरुवत पोषक था। अभिनव कालिदास कवि परिमल का नवसाहसांक चरित्र इसी राजा की प्रशंसा में लिखा गया है। __. मुंज का भतीजा और सिन्धुल का पुत्र भोज. (1010-1053 ई.) भारतीय लोक कथाओं में प्राचीन विक्रमादित्य की भांति ही प्रसिद्ध है। भोज भी जैनधर्म का पोषक था। उसके समय में धारा नगरी दिगम्बर जैन धर्म का प्रमुख केन्द्र थी और राजा जैन विद्वानों एवं मुनियों का बड़ा आदर करता था। सरस्वती विद्या मंदिर के नाम से उसने एक विशाल विद्यापीठ की स्थापना की थी। उसने जैन मंदिरों का भी निर्माण करवाया बताया जाता है। ऊपर बताये गये विद्वानों में से अनेक दिग्गज जैनाचार्यों ने आश्रय एवं समान प्राप्त किया था। आचार्य शांतिसेन ने उसकी राजसभा में अनेक अजैन विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित किया था। भोज का सेनापति गुलचंद्र भी जैन था। धनंजय, धनपाल, धनि आदि गृहस्थ जैन कवियों ने उसके आश्रय में काव्य साधना की थी। भोज के उपरांत जयसिंह प्रथम (1053-60 ई.) राजा हुआ। उसके उत्तराधिकारी निर्बल रहे। उनमें नरवर्मनदेव (1104-1107 ई.) महान् यौद्धा और जैनधर्म का अनुरागी थी। उज्जैन महाकाल मंदिर में जैनाचार्य रत्नदेव का शैवाचार्य विद्या शिववादी के साथ शास्त्रार्थ उसी समय हुआ। इस राजा ने जैन गुरु समुदघोष और वल्लभसूरि का भी सम्मान किया था। उसके पुत्र यशोवर्मदेव ने भी जैनधर्म और जैन गुरुओं का आदर किया। जिनचंद्र नामक एक जैनी को उसने गुजरात प्रान्त का शासक नियुक्त किया था। 12वीं 13वीं शताब्दी में धारा के परमार नरेश विन्ध्यवर्मा और उसके
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