Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 1
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 11
________________ लेखकीय (हिन्दी अनुवाद के सन्दर्भ में) भारतीय भाषाओं के साहित्य के इतिहास को जाननेवाले किसी भी व्यक्ति को यह एक इन्द्रजाल-सा मालूम होगा। एक कन्नड़ का उपन्यास, वह भी कन्नड़ में प्रकट हुए तीन ही वर्षों में हिन्दी में प्रकट हो रहा है, यह आश्चर्य की बात तो है ही। इस आश्चर्यकर घटना के लिए कारणीभूत साहित्यासक्त सहृदयों को मनसा स्मरण करना मेरा प्रथम कर्तव्य है । 'पट्टमहादेवी शान्तला' कन्नड़ में जब प्रकाशित हुआ तो थोड़े ही समय में सभी वयोवस्था के सभी स्तर के सभी वर्ग के सामान्य एवं बुद्धिजीवियों की प्रशंसा का पात्र बन गया। उस प्रशंसा का परिणाम ही, इसके हिन्दी अनुवाद का प्रकाशन माना जाय तो शायद कोई गलती नहीं होगी। मुझसे सीधे परिचित न होने पर भी इस कृति को पढ़कर सराहनेवाले डॉ. आर. एस. सुरेन्द्र जी, उनके बन्धु एवं मित्रवर्ग की सहानुभूति के फलस्वरूप इस कृति को हिन्दी में लाने की इच्छा से सम्मान्य श्री साहू श्रेयांस प्रसाद जैन से परिचय कराया। इस उपन्यास को पढ़कर इसमें रूपित शान्तलादेवी के व्यक्तित्व से आकृष्ट होकर इसे हिन्दी में अनुवाद करने की तीव्र अभिलाषा रखने वाले मेरे वृद्ध मित्र श्री पि. वेंकटाचल शर्मा भी परिचय के समय अचानक साथ थे। इस परिचय और सन्दर्शन के फलस्वरूप ही, भारतीय ज्ञानपीठ इसके प्रकाशन के लिए इच्छुक हुआ। भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन से मेरा पहले से परिचय रहा है। किन्तु वर्षों से सम्पर्क न होने से जैसे एक-दूसरे को भूल से गये थे। यह रचना तुरन्स पुरानी मैत्री को नया रूप देकर हम दोनों को पास लायी। और वह आत्मीयता इस बार स्थायी बन सकी। प्रकाशन के कार्य भार को सीधे वहन करनेवाले भारतीय ज्ञानपीठ के भूतपूर्व कार्यसचिव डॉ. विमलप्रकाश जैन मुझसे बिलकुल अपरिचित थे सम्मान्य श्री साहू श्रेयांस प्रसाद जैन की इच्छा के अनुसार उन्होंने मुझसे स्वयं पत्रव्यवहार प्रारम्भ किया। सहज साहित्याभिरुचि, सूक्ष्मगुणग्रहणशक्ति के कारण पन्द्रह

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