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में, केनरा बैंक से आर्थिक सहायता भी मिल गयी।
आत्मीय भावना से सलाह देने के साथ आकर्षक रक्षा कवच को सुन्दर ढंग से तैयार कराकर मुद्रण कर देने वाली 'रचना' संस्था के श्री सि. आर. राव और उस संस्था के कलाकार श्री कुलकर्णी का मैं आभारी हूँ। इस उपन्यास की घटनाओं के स्थानों का परिचय पाठकों को कराने के अभिप्राय से नक्शा तैयार करने में, मेरे पुत्र चि. सर्वेश, दामाद श्री चि. राजकुमार और श्री के. एम. अनन्तस्वामी ने मेरा हाथ बँटाया है। उनके प्रति शुभकामना ज्ञापित करना मेरा कर्तव्य है।
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग ने वास्तु शिल्प चित्रों को देकर उनका उपयोग करने की अनुमति दी है। मैं उनका कृतज्ञ हूँ।
कन्नड़ का यह उपन्यास 2000 पृष्ठों वाला होने की आशा थी। लेकिन 2240 से भी अधिक हो गया। इसको चार ही महीनों में सुचारू रूप से मुद्रण करने वाले इला प्रिण्टर्स की श्रीमती विजया और उनके कर्मचारी वर्ग का भी मैं आभारी हूँ।
मुद्रण कार्य प्रारम्भ होने के बाद अचानक कागज का अभाव! दाम बढ़ गया था। पृष्ठ भी इतने अधिक! इससे भी प्रकाशन में कुछ देरी हुई। तथापि अधिक देरी न हो, इस उद्देश्य से मुझे कागज देनेवाले एक्सेल पेपर मार्ट के श्री गुप्त का मैं कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करता हूँ।
__ मेरा प्रार्थना-पत्र मिलते ही, प्रकाशन पूर्व चन्दा भेजनेवाले साहित्यासक्त सहदयों का, संघ-संस्थाओं का, एवं इस दिशा में सहयोगी अन्य अपने मित्रवर्ग का भी मैं कृतज्ञ
उपन्यास के पात्रों की कल्पना सुलभ है। लिखते समय ही नवीन आलोचनाएँ आ जाती हैं। उनके भंवर में फंसकर बाहर आने में मुझे जो सहायता मिली उनके अनेक स्वरूपों को, व्यक्तियों को देखने पर अनुभव में आये हुए आत्मीयता के अनेक मुख तो कल्पनातीत हैं।
सी.के. नागराजराव
पैंगल संवत्सर श्रावण शुद्ध द्वादशी बैंगलोर, 6 मार्च, 1978
चौदह