Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 1
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ परमार, चालुक्य, चोल, कोंगाल्व, चेंगाल्व, आलुप, सान्तर, उच्चगिपाण्ड्य, कदम्ब आदि पड़ोसी राज्यों के साथ के युद्ध, उस समय अनुसरण किये हुए युद्धतन्त्र भी इसमें सम्मिलित हैं। जीर्णीद्धार हुए यादवपुरी के लक्ष्मीनारायण, यदुगिरि के चलुवनारायण, दोड्डगइडुवल्लि की महालक्ष्मी, क्रीडापुर के केशवदेव ग्राम के धर्मेश्वर, मन्दिर, बेलुगोल की अंधेरी बसदि तथा शान्तिनाथ बसदि, पनसोगे की पार्श्वनाथ बसदि, वेलापुरी के चनकेशव मन्दिर, दोरसमुद्र के होयसलेश्वर-शान्तलेश्वर यमलशिवालय पोय्सल शिल्प के लिए पर्याप्त निदर्शन हैं। ___यह उपन्यास, यद्यपि ग्यारहवीं शती के अन्तिम दशक से आरम्भ होकर बारहवीं शती के चौथे दशक के आरम्भ तक के, गतकाल के जन-जीवन को समग्रलप से निरूपण करने की, कालक्रम की दृष्टि से एक रीति की परिसर भावनाओं के लिए सीमित वस्तु की रचना है, फिर भी सार्वकालिकशाश्वत, विश्वव्यापी मानवीय मूल्यों की समकालीन प्रज्ञा को भी इसमें अपनाया गया है। बेलूर साहित्य-सम्मेलन के सन्दर्भ में मुझे अनेक सुविधाएँ देका, वहाँ मेरे मुकाम को उपयुक्त एवं सन्तोषपूर्ण बनाने वाले मित्रों को इस सुअवसर पर स्मरण करना मेरा कर्तव्य है। तब बेलूर नगर-सभा के अध्यक्ष, एवं साहित्य सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष रहनेवाले श्री एस.आर. अश्वत्थ, सदा हैंसमुख श्री चिदम्बर श्रेष्टि, साहित्य एवं सांस्कृतिक कार्यों में अत्यन्त रुचि रखने वाले वकील श्री के. अनन्त रामय्या, वाणी खड्ग जैसी तीक्ष्ण होने पर भी आत्मीयता में किसी से पीछे न रहनेवाले श्री एच.पी, नंजुण्डय्या, वहाँ के हाई स्कूल के पण्डित (अब स्वर्गवासी) रामस्वामी अय्यंगर आदि ने इस कृति की रचना में कितनी ही सहूलियतें दी हैं। तोण्णूर (उस समय की यादवपुरी) अब खेड़ा है। यह पाण्डवपुर से छः मील दूर है। वहाँ जाकर आँखों देख आने की अभिलाषा से पाण्डवपुर जाकर मित्र श्री समेतनहल्ली रामराव के यहाँ अतिथि रहा। तब वे शकुन्तला काव्य रच रहे थे । कस्बा इलाका रेवेन्यू अधिकारी (Revenue Inspector ) श्री सी.एस. नरसिंह मूर्ति (प्यार का नाम 'मगु') ने समय निकालकर मेरे साथ साइकिल पर तोण्णूर आकर सर्वे करने में मेरी सहायता की। इसी तरह तलकाडु वैद्येश्वर मन्दिर के पुजारी श्री दीक्षित, मेल्लुकोटे (उस समय की यदुगिरि) के श्री अनन्त नारायण अय्यंगर भी उन-उन स्थानों को देखने में सहायक बने। उसी तरह बादामी के दर्शन हेतु कथाकार श्री बिन्दुमाधवलक्कुण्डि के सर्वे हेतु मित्र श्री कमलाक्ष कामत तथा श्री कट्ठी मठ, बल्लिगावे (उस समय का बलिपुर) को सम्पूर्ण रूप से देखने में मेरे आत्मीय मित्र एवं सह-नट शिकारिपुर के श्री नागेशराव का पूरा-पूरा सहयोग प्राप्त हुआ। इन सबके प्रति मेरा बहुत-बहुत आभार। बारह

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 400