Book Title: Path Ke Fool Author(s): Buddhisagarsuri, Ranjan Parmar Publisher: Arunoday Foundation View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूमिका वात्सल्य के महासागर, आचार्य पुङ्गव श्रीमत् पद्मसागरसूरिजी म.सा. ने मुझे ज्ञान-वारिधि, कर्मयोगीश्वर आचार्यदेवेश श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा. की पुस्तक “पथ के फूल'' की भूमिका लिखने का स्नेहसिक्ता आदेश दिया, उसे परम विनय-भक्ति पूर्वक शिरोधार्य करके कुछ अटपटे शब्द लिखने की बालचेष्टा कर रहा हूँ। परमकृपालु आचार्यप्रवर श्रीमद् पद्मसागरसूरिजी म.सा. ने ज्ञान-वाचस्पति योगनिष्ट आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी म.सा. के बृहद ग्रंथ "कर्मयोग'' की भूमिका लिखने का कुसुमभार मुझे सोंपा था। कर्मयोग गूजराती भाषा में ८०० पृष्टों का विशाल ग्रंथ हैं, जिसका संक्षिप्त हिन्दी रूपान्तर श्री अरुणोदय फाउन्डेशन-कोबा द्वारा ही बहुत ही सुन्दर रूप से प्रकाशन किया गया हैं, जो अतिशय लोकप्रिय हुआ प्रस्तुत-पुस्तक/किताब कर्मयोगी श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी म.सा. द्वारा आलेखित विविध पत्रों का संग्रह हैं जिनमें सर्वजनहिताय भावना पुष्पित हैं | जैनदर्शन को इतनी सूक्ष्मता और सरलता से रूपायित करने की अद्भुत कला के दर्शन इस पुस्तक में होते हैं। साहित्य की दो विधाएँ सर्वत्र मान्य हैं-गद्य और पद्य | गद्य में कहानी, उपन्यास, निबन्ध, डायरी, आत्मकथा, जीवन कथा,रिर्पोर्ताजादि अनेकानेक शैलियाँ हैं। पद्य में महाकाव्य, खण्डकाव्य, गीतिकाव्यादि भिन्न-भिन्न विधाएँ हैं। परन्तु पत्र-लेखन शैली अपनी विशेषता के कारण विशेष लोकप्रिय हैं। पत्रों में आत्मीयता का अधिक्य होता हैं, इसलिए यह पाठकों के हृदय को छू लेता हैं। श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी की पत्रशैली अDठी हैं, अगूंठी इसलिए हैं किउपदेशों को साहित्य की चासनी में पगाकर “इमरती" मिठाई की तरह रसात्मक बना दिया हैं, कोरे उपदेश शुष्क होते हैं, परन्तु उन्हें साहित्य-रस में डुबोकर जब प्रस्तुत किया जाता हैं, तब उनकी लोकप्रियता बढ़ जाती हैं। वस्तुतः मनुष्यभव का एक परम पुनीत उद्देश्य हैं, वह हैं-- अपनी देह में रही हुई अशुद्ध आत्मा को शुद्ध बनानी और यह तभी संभव हैं कि जब हम सुच्चरित्र बनें, अपने जीवन में मैत्री, प्रमोदादि भावना के फूल खिलाएँ तथा अपने कार्य कलापों, आचार-व्यवहार से जगत का प्रांगण सुख-शान्ति की सौरभ से भर दें। साहित्य की स्वर्णमुद्रिका में ये पत्र बहुमूल्य नगीने की तरह जड़े हुए हैं। जब पाठक किताब को कर-कमलों में लेंगे और पत्र-वांचन का शुभारम्भ करेंगे, तब For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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