Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 05
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 11
________________ अब मनोमय कोष से उच्चतर, मनोमय कोष से विराट, यह है. 'विज्ञानमय कोष', यह है भाव- शरीर। यह बहुत-बहुत विस्तीर्ण है। अब इसमें कोई कारण नहीं है, यह तर्कातीत है, अत्यधिक सूक्ष्म हो गया है, यह है भाव-बोध। यह वस्तुओं के स्वभाव में सीधे देख लेना है। यह उनके बारे में सोचने का प्रयास नहीं है। आंगन में एक सरू का वृक्ष है, तुम बस उसे देखते हो, तुम इसके बारे में सोचते नहीं, भाव में 'किसी के बारे में कुछ नहीं होता। तुम बस वहां मौजूद होते हो, ग्रहणशील होकर, और सत्य स्वयं अपनी प्रकृति तुम पर उदघाटित कर देता है। तुम प्रक्षेपित नहीं करते। तुम किसी तर्क, निष्पत्ति, या ऐसी किसी बात की तलाश में नहीं होते। तुम तो खोज भी नहीं रहे होते। तुम मात्र प्रतीक्षारत होते हो, और सत्य प्रकट हो जाता है, यह एक उदघाटन है। भाव-शरीर तुम्हें क्षितिज की सीमाओं के बहुत आगे ले जाता है, लेकिन अभी एक शरीर और है। के पार है। यह शुदध आनंद यह पांचवां शरीर है. 'आनंदमय कोष', आनंद-काया। यह वास्तव से निर्मित है। भाव का भी अतिक्रमण हो गया है। याद रहे, ये पांच बीज, मात्र बीज हैं, इनके पांचों के पार है तुम्हारी वास्तविकता। ये तुम्हें घेरे। हुए बीजावरण मात्र हैं। पहला बहुत स्थूल है, छह फीट के शरीर में तुम लगभग पूरे ही समाए हुए हो। दूसरा उससे बड़ा है, तीसरा और भी बड़ा है, चौथा इससे भी बड़ा, और पांचवां बहुत बड़ा है। लेकिन फिर भी ये बीजावरण हैं। सभी सीमित हैं। यदि सारे बीजावरण गिरा दिए जाएं और तुम अपनी वास्तविकता में अनावृत खड़े हो, तो तुम असीम हो। यही कारण है कि योग कहता है : तुम परमात्मा हो! अहं-ब्रह्मास्मि। तुम्ही हो वह ब्रह्म! अब तुम स्वयं ही परम सत्य हो, अब सारे अवरोध गिराए जा चुके हैं। जरा इसे. समझने की कोशिश करना। ये अवरोध तुम्हें वर्तुलों के रूप में घेरे हुए हैं। पहला अवरोध अत्याधिक कठोर है। इसके पार जाना बहत कठिन है। लोग अपनी भौतिक देह में सीमित रहते हैं और सोचते हैं कि यह भौतिक जीवन ही सारा जीवन है। इसमें मत ठहरो। भौतिक-शरीर, ऊर्जा-शरीर के लिए एक सोपान मात्र है। ऊर्जा-शरीर भी, मनस-शरीर के लिए एक सोपान है। यह भी भावशरीर के लिए स्वयं मैं एक चरण है। वह भी आनंद-काया के लिए एक सीढ़ी है। और आनंद-काया से तुम छलांग लगाते हो, अब कोई सीढ़ियां नहीं हैं, तुम अपने अस्तित्व के अतल शून्य में, जो शाश्वत और अनंत है, छलांग लगा देते हो। ये पांच बीज हैं। इन पांच बीजों से संबंधित? पंचभूतों, पांच महातत्वों के लिए योग के पास एक अलग देशना है। जैसे कि तुम्हारा शरीर भोजन, पृथ्वी से निर्मित है, पृथ्वी पहला तत्व है। याद रखो, इसका इस धरती से कुछ लेना-देना नहीं है। तत्व का अर्थ यह है कि जहां भी पदार्थ है। यह पृथ्वी है; यह पदार्थ पृथ्वी है, यह स्थूल पृथ्वी है। तुममें यह शरीर है; तुम्हारे बाहर सबकी देहें हैं। सितारे भी इसी मिट्टी से बन- हैं। जो भी अस्तित्व रखता है मिट्टी से बना है, मृण्मय है। पहला आवरण पार्थिव है।

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