Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 05 Author(s): Osho Publisher: Unknown View full book textPage 9
________________ है। यदि उनकी मांस-पेशियों को विश्रांत किया जा सके, जैसा कि रोल्फिंग में किया जाता है.. .इदा सेल्फ ने शरीर की आंतरिक संरचना को परिवर्तित करने की कुछ सुंदर विधियां अविष्कृत की हैं, क्योंकि अगर तुम कई वर्षों से गलत ढंग से श्वास लेते आ रहे हो तो तुमने मांस-पेशियों का एक ढंग विकसित कर लिया है, यह ढंग तुम्हें उचित ढंग से या गहरी श्वास नहीं लेने देगा और बीच में अवरोध बन जाएगा। और यदि तम कुछ सेकंड याद रख सको कि गहरी श्वास लोगे; फिर जब तम अपने कौम में उलझ जाओगे, तुम पुन: उथली छाती से श्वास लेना शुरू कर दोगे। मांस-पेशियों के ढंग को बदलना पडेगा। एक बार यह पेशी विन्यास बदल जाए, भय मिट जाता है, तनाव खो जाता है। रोलफिग अत्यधिक सहायक होती है। लेकिन काम तो प्राणमय कोष दूसरे शरीर, बायो-प्लाज्मा बॉडी, जीवन-ऊर्जा देह, ची शरीर, या जो कुछ भी नाम तुम इसे देना चाहो, पर हो रहा होता है। एक बच्चे को ध्यान से देखो,- यही श्वास लेने का स्वाभाविक ढंग है, और उसी प्रकार से श्वास लो। जबतुम श्वास भीतर लो तब अपने पेट को ऊपर उठने देना और श्वास छोड़ते समय पेट को भीतर आने दो। इस बात को ऐसी लय में होने दो कि यह तुम्हारी ऊर्जा का एक गीत, एक नृत्य, एक लयबद्धता, एक समस्वरता सा बन जाए। और तुम इतना विश्रांत इतना जीवंत, इतना ऊर्जस्वी अनुभव करोगे, जिसकी तुमने कभी कल्पना भी न की होगी कि इतनी जीवंतता संभव है। अब आता है तीसरा शरीर 'मनोमय कोष', मनस-शरीर। तीसरा दूसरे से बड़ा, दूसरे से सूक्ष्मतर, दूसरे से उच्चतर है। पशुओं के पास दूसरा शरीर तो है परंतु तीसरा शरीर नहीं है। जानवर कितने प्राणवान होते हैं। एक शेर को चलते हुए देखो। कितनी सुंदरता, कितना प्रसाद, कैसी शान है। मनुष्य को इससे सदा ईर्ष्या रही है। एक हिरन को दौड़ते हुए देखो। कैसा निर्भार सा, कितनी ऊर्जा, कैसी महत ऊर्जा की घटना है। मनुष्य को सदा इससे ईर्ष्या रही है। लेकिन मनुष्य की ऊर्जा उच्चतर की ओर बढ़ रही है। तीसरा शरीर मनोमय कोष, मनस-शरीर है। यह विराट है, दूसरे से अधिक विस्तृत है। और यदि तुम इसका विकास नहीं करते, तो तुम मनुष्य होने की संभावना मात्र बने रहोगे, वास्तविक मनुष्य नहीं होंगे।'मैन' शब्द मन, मनोमय से आया है। अंग्रेजी शब्द 'मैन' भी संस्कृत मूल 'मन' से आता है।'मैन' का हिंदी अर्थ मनुष्य भी उसी मूल 'मन', मनस से आया है। यह मन ही है जो तुम्हें मनुष्य बनाता है। लेकिन करीब-करीब, तुम्हारे पास यह है नहीं। इसके स्थान पर तुम्हारे पास एक संस्करित यांत्रिकता है। तुम अनुकरण से जीते हो। ऐसे में तुम्हारे पास मन नहीं होता। जब तुम अपनी स्वयं की, सहजस्फूर्त जिंदगी जीना शुरू कर देते हो, जब अपने जीवन की समस्याओं का हल तुम खुद करते हो, जब तुम उत्तरदायी हो जाते हो, तो ही तुम मनोमय कोष में विकसित होने लगते हो। तब मनस शरीर विकसित होता है। सामान्यत: तुम हिंदू मुसलमान या ईसाई हो तब तुम्हारे पास उधार का मन होता है यह तुम्हारा मन नहीं है। हो सकता है कि जीसस मनोमय कोष के महत् विस्फोट को उपलब्ध हए हों, और फिर लोग बस उसी को दोहराए जा रहे हैं। यह पुनरुक्ति तुम्हारा विकास नहीं बनेगी। यह पुनरुक्ति एक रुकावटPage Navigation
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