Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 05
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 8
________________ यह ऊर्जा कहां से आती है? यह प्राणमय कोष से आती है। बच्चा स्वाभाविक ढंग से श्वास लेता है, तो निसंदेह अधिक प्राण भीतर लेता है, ज्यादा ची उसमें जाती है, और यह उसके उदर में एकत्रित हो जाती है। उदर संचय का स्थान है, कुंड है। बच्चे का निरीक्षण करो यही है श्वास लेने का उचित ढंग । जब एक बच्चा श्वास लेता है, उसका वक्ष पूर्णतः अप्रभावित रहता है। उसका उदर ऊपर और नीचे होता है। वह तो जैसे पेट से ही श्वास लेता है। सारे बच्चों का एक अलग सा पेट होता है; ऐसा पेट उनके श्वास लेने के ढंग और ऊर्जा के कुंड के कारण होता है। श्वास लेने का उचित ढंग यही है याद रखो, अपना वक्ष बहुत ज्यादा उपयोग में नहीं लाना है। कभी कभार आपातकाल में यह इस्तेमाल किया जा सकता है। तुम अपनी जान बचाने को दौड़ रहे हो, तब सीने का प्रयोग किया जा सकता है। यह आपातकालीन उपाय है जब तुम उथली, तेज श्वास ले सकते हो और दौड़ सकते हो। लेकिन सामान्यतः तो छाती का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। और एक बात याद रखनी है, छाती का उपयोग आपात स्थिति में ही किया जाना चाहिए, क्योंकि आपात स्थिति में स्वाभाविक श्वास चलना कठिन है, क्योंकि यदि तुम स्वाभाविक श्वास लेते रहे तो तुममें इतनी थिरता और शांति रहेगी कि न तुम दौड़ सकोगे, न तुम लड़ सकोगे। तुम इतने विश्रांत और अखंड होगे, बुद्ध की भांति, और आपात स्थिति में- जैसे घर में आग लगी हो । यदि तुम स्वाभाविक ढंग से श्वास लेते रहे, तो तुम कुछ भी बचा नहीं पाओगे। या जंगल में कोई चीता तुम पर छलांग लगा दे और तुम स्वाभाविक ढंग से स्वास लेते रहे, तो तुम्हें कोई चिंता ही न होगी। तुम कहोगे, 'ठीक है, वह जो करना चाहता है करने दो। तुम अपने को बचाने लायक भी न रहोगे । अत: प्रकृति ने एक आपात उपाय दिया है, छाती का प्रयोग आपात विधि है। जब कोई चीता तुम पर हमला करे तो तुम्हें स्वाभाविक श्वसन क्रिया छोड़नी पड़ेगी, और तुम्हें छाती से श्वास लेनी पड़ेगी। तब तुम्हारे पास दौड़ने, संघर्ष करने या ऊर्जा के त्वरित उपयोग की अधिक क्षमता हो जाती है। और आपातकालीन परिस्थितियों में केवल दो विकल्प होते हैं, भागो या लड़ो। दोनों के लिए बड़ी सतही लेकिन सघन ऊर्जा की, ऊपरी, लेकिन हलचल भरी, तनाव पूर्ण स्थिति की जरूरत होती है। अब अगर तुम छाती से ही श्वास लिया करते हो, तुम्हारे मन में अनेक तनाव आने लगेंगे। यदि तुम लगातार छाती से ही श्वास लेते हो तो तुम सदा भयभीत रहोगे। क्योंकि छाती से श्वास लेना सिर्फ भयंकारी परिस्थितियों के लिए है और अगर तुमने इसे आदत बना लिया है तो तुम लगातार, भयभीत, तनावग्रस्त, सदा भागने को आतुर रहोगे। कहीं शत्रु नहीं है, लेकिन तुम शत्रु के वहां होने की कल्पना कर लोगे। इसी भांति विभ्रामकता निर्मित होती है। पश्चिम में भी कुछ लोगों ने अलेक्ज़ेंडर, लावेन या दूसरे जीव ऊर्जा वाले लोगों ने, जो जीव ऊर्जा पर कार्य कर रहे हैं, इस घटना को देखा है। यह ऊर्जा ही प्राण है। उन्होंने यह अनुभव किया कि जो लोग भयभीत है, उनकी छाती तनावग्रस्त है और वे बहुत उथली श्वास लिया करते हैं। यदि उनकी श्वास को गहरा किया जा सके कि वह उदर को हारा केंद्र को छूने लगे, तब उनका भय तिरोहित हो जाता , , -

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