Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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६८
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
उदा०- (3) शृणोति ।
आर्यभाषा - अर्थ - (श्रुवः) श्रु धातु से परे (धनुः) श्नु प्रत्यय होता है (च) और (श्रुवः) श्रु के स्थान में (2) शृ आदेश होता है (कर्तीर) कर्तृवाची (सार्वधातुके) सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर ।
उदा०- - (श्रु) शृणोति । वह सुनता है।
सिद्धि-शृणोति । श्रु+लट् । श्रु+श्नु+तिप् । शृ+नो+ति । शृणोति ।
यहां 'श्रु श्रवणे' ( वा०प०) धातु के भ्वादिगण में पठित होने से 'कर्तरि शप् (३।१।६८) से 'शप्' प्रत्यय प्राप्त था। इस सूत्र से 'श्नु' प्रत्यय और 'श्रु' के स्थान में 'श्रृ' आदेश होता है। 'सार्वधातुकमपित्' (१।२।४) से 'श्नु' प्रत्यय के ङित् होने से 'क्ङिति च' (१1१।५) से 'शृ' धातु को 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः' (७।३।८४) से प्राप्त गुण का निषेध हो जाता है। 'तिप्' प्रत्यय परे होने पर 'श्नु' प्रत्यय को 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः' (७।३।८४) से गुण होता है। 'वा०- ऋवर्णाच्चेति वक्तव्यम्' (८/४ 1१) से णत्व होता है।
श्नु-विकल्पः
(८) अक्षोऽन्यतरस्याम् । ७५ ।
प०वि० - अक्ष: ५ ।१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम् । अनु० - सार्वधातुके, कर्तरि, श्नुः इति चानुवर्तते । अन्वयः-अक्षो धातोरन्यतरस्यां श्नुः कर्तरि सार्वधातुके । अर्थः-अक्षो धातोः परो विकल्पेन श्नुः प्रत्ययो भवति, कर्तृवाच सार्वधातुके प्रत्यये परतः । पक्षे शप् प्रत्ययो भवति ।
उदा०- (अक्ष) अक्ष्णोति, अक्षति वा ।
आर्यभाषा - अर्थ - (अक्षः) अक्षू (धातोः) धातु से परे (अन्यतरस्याम् ) विकल्प से ( श्नुः) श्नु प्रत्यय होता है ( कतीर) कर्तृवाची (सार्वधातुके ) सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर। विकल्प पक्ष में 'शप्' प्रत्यय होता है।
उदा००- (अक्ष) अक्ष्णोति, अक्षति वा । वह व्याप्त होता है ।
सिद्धि-अक्ष्णोति, अक्षति | 'अक्षू व्याप्तौँ' (भ्वा०प०) धातु से सार्वधातुक 'तिप्’ प्रत्यय परे होने पर इस सूत्र से 'श्नु' प्रत्यय होता है। रषाभ्यां नो णः समानपदे (८।४।१) से णत्व होता है। 'अक्षति' यहां विकल्प पक्ष में 'कर्तरि शप्' (३ ।१ ।६८) से 'शप्' प्रत्यय है।
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