Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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तृतीयाध्यायस्य प्रथमः पादः
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(४) धाय्या | यहां डुधाञ् धारणपोषणयो:' (जु०3०) धातु से इस सूत्र से ‘ण्यत्' प्रत्यय और युक् आगम निपातित है। स्त्रीत्व विवक्षा में 'अजाद्यतष्टाप्' (४/१/४) से 'टाप्' प्रत्यय होता है।
विशेष- (१) सान्नाय-दर्शेष्टि नामक यज्ञ में तीन आहुतियां होती हैं, पहली अग्निदेवता के लिये पुरोडाश की, दूसरी इन्द्र के लिये दधि की, तीसरी इन्द्र के लिये दूध की। दूसरी और तीसरी आहुति को साथ मिलाने से सान्नाय आहुति बनती है। पहले चमस में दही भरकर, उसके ऊपर दूध छोड़ने से 'सान्नाय' हवि बनती है। सम् + नी सानना (मिलाना) ।
(२) धाय्या - ऋग्वेद की निम्नलिखित ११ ऋचायें सामिधेनी कहाती हैं(१) प्र वो वाजा अभिद्यवो हविष्मन्तो घृताच्या ।
देवाञ्जगाति सुम्नयुः ।।
(२) ईळे अग्निं विपश्चितं गिरा यज्ञस्य साधनम् । श्रुष्टीवानं धितावानम् । ।
(३) अग्ने शकेम ते वयं यमं देवस्य वाजिनः । अति द्वेषांसि तरेम । ।
(४) समिध्यमानोऽध्वरे ३ऽग्निः पावक ईड्यः । शोचिष्केशस्तमीमहे ।।
(५) पृथुपाजा अमर्त्यो घृतनिर्णिक् स्वाहुत: । अग्निर्यज्ञस्य हव्यवाट् । ।
(६) तं सबाधो सतनुच इत्था धिया यज्ञवन्तः । आ चक्रुरग्निमूतये ।।
(७) होता देवो अमर्त्यः पुरस्तादेति मायया । विदथानि प्रचोदयन् ।।
(८) वाजी वाजेषु धीयतेऽध्वरेषु प्र णीयते । विप्रो यज्ञस्य साधनः । ।
(९) धिया चक्रे वरेण्यो भूतानां गर्भमा दधे । दक्षस्य पितरं तना । ।
(१०) नि त्वा दधे वरेण्यं दक्षस्येळा सहस्कृत । अग्ने सुदीतिमुशिजम् ।।
(११) अग्ने यन्तुरमप्तुरमृतस्य योगे वनुषः ।
विप्रा वाजैः समिन्धते । । (ऋ० ३ । २७ ॥१-११) ।
इन ११ ऋचाओं में से पहली और ग्यारहवीं ऋचा को तीन-तीन बार पढ़ने से कुल १५ सामिधेनी ऋचायें हो जाती हैं। इनमें से चौथी ऋचा और ग्यारहवीं ऋचा के बीच की
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