Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 557
________________ ५४४ ___ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (५) च्यावयाति । यहां-णिजन्त 'च्युङ् गतौ' (भ्वा०आ०) धातु से 'लेट्' के लादेश 'तिप्' प्रत्यय को 'आट्' आगम है। कर्तरि शप्' (३।१।६८) से 'शप्' प्रत्यय भी होता है। विशेष-जो यहां उक्त धातु पाणिनीय धातुपाठ में आत्मनेपदी पढ़ी गई हैं किन्तु उन्हें यहां परस्मैपदी दिखाया गया है। लेट् लकार का वैदिकभाषा में ही प्रयोग होता है। इसका समाधान वा च्छन्दसि सर्वे विधयो भवन्ति' है। ऐ-आदेशः (२) आत ऐ।१५। प०वि०-आत: ६१ ऐ १।१ (लुप्तप्रथमानिर्देश:)। अनु०-लस्य, लेट इति चानुवर्तते । अन्वय:-धातोर्लेटो लस्याऽऽत ऐ। अर्थ:-धातो: परस्य लेट्सम्बन्धिनो लादेशस्याऽऽकारस्य स्थाने ऐकार आदेशो भवति। उदा०-तौ मन्त्रयैते। युवां मन्त्रयैथे। तौ करवैते। युवां करवैथे। आर्यभाषा-अर्थ-(धातो:) धातु से परे (लेट:) लेट् सम्बन्धी (लस्य) लादेश के . (आत:) आकार के स्थान में (ऐ) ऐकार आदेश होता है। उदा०-तौ मन्त्रयैते । वे दोनों मन्त्रणा करें। युवां मन्त्रयैथे । तुम दोनों मन्त्रणा करो। तौ करवैते । वे दोनों करें। युवां करवैथे। तुम दोनों करो। सिद्धि-(१) मन्त्रयैते । मन्त्रि लेट् । मन्त्रि+आताम् । मन्त्रि+शप्+अट्+आताम्। मन्त्रि+अ+अ+आते। मन्त्रि+अ+ऐते । मन्त्रे+अ+ऐते । मन्त्रयैते। यहां मन्त्रि गुप्तभाषणे (चु०आ०) इस णिजन्त धातु से लेट्' प्रत्यय के लादेश 'आताम्' प्रत्यय के 'आ' के स्थान में इस सूत्र से 'ऐ' आदेश होता है। कर्तरि शप्' (३।१।६८) से 'शप्' प्रत्यय, सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से 'मन्त्रि' धातु को गुण और 'अय्' आदेश होता है। (२) मन्त्रयैथे। यहां 'आथाम्' प्रत्यय के 'आ' के स्थान में ऐ' आदेश है। शेष कार्य पूर्ववत् है। (३) करवैते । यहां डुकृञ् करणे (तनाउ०) धातु से 'आताम्' प्रत्यय के 'आ' को ऐ' आदेश है। तनादिकृअभ्य उ:' (३।११७९) से 'उ' विकरण प्रत्यय होता है। 'सार्वधातुकार्धधातुकयो: (७।३।८४) से कृ' धातु को तथा उ' प्रत्यय को भी गुण हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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