Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
५४७
तृतीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः अन्वय:-धातोर्लेटो लस्य उत्तमस्य सो वा लोपः।
अर्थ:-धातो परस्य लेट्सम्बन्धिनो लादेशस्य उत्तमपुरुषस्य सकारस्य विकल्पेन लोपो भवति।
उदा०-सकारस्य लोप:-आवां करवाव। वयं करवाम। न च भवति-आवां करवावः । वयं करवामः ।
आर्यभाषा-अर्थ-(धातो:) धातु से परे (लेट:) लेट् सम्बन्धी (लस्य) लादेश के (उत्तमस्य) उत्तम पुरुष के (स:) सकार का (वा) विकल्प से (लोप:) लोप होता है।
उदा०-सकार का लोप-आवां करवाव । वयं करवाम । सकार का लोप नहीं-आवां करवावः । वयं करवाम: । हम दोनों करें। हम सब करें।
सिद्धि-(१) करवाव । कृ+लेट् । कृ+उ+आट्+वस् । कर+ओ+आ+व । करवाव ।
यहां 'डुकृञ् करणे' (तना०उ०) धातु से 'लेट्' प्रत्यय और उसके स्थान में लादेश उत्तम पुरुष का द्विवचन वस्' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'वस्' के सकार का लोप होता है। यहां लेटोऽडाटौ' (३।४।९४) से 'आट' आगम, तनादिकृभ्य: उ:' (३।११७९) से 'उ' विकरण प्रत्यय और सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से 'कृ' धातु और 'उ' प्रत्यय को गुण होता है। 'एचोऽयवायाव:' (६।१।७५) से 'अव्' आदेश होता है। ऐसे ही-करवाम।
(२) करवावः । कृ+लेट् । कृ+उ+आट्+वस् । कर+ओ+आ+वस् । करवावरु । करवावर् । करवावः ।
यहां इस सूत्र से विकल्प पक्ष में वस्' प्रत्यय के सकार का लोप नहीं होता है। उसे 'ससजुषो रु:' (८।२।६६) रुत्व और 'खरवासनयोर्विसर्जनीय:' (८।३।१५) से रेफ को 'विसर्जनीय' आदेश होता है। ऐसे ही-करवामः ।
डित्-लकारादेशागमप्रकरणम् सकार-लोपः (डिति)
(१) नित्यं डितः।६६ । प०वि०-नित्यम् ११ डित: ६।१। अनु०-लस्य, लोप:, स:, उत्तमस्य इति चानुवर्तते। अन्वय:-धातोर्डितो लस्य उत्तमस्य सो नित्यं लोप: ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org