Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 559
________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (३) दधसे । धा+लेट् । धा+शप्+अट्+थास् । धा+धा+०+अ+से । ध+धा+अ+से । द+ध्+अ+से । दधसे । ५४६ यहां 'डुधाञ् धारणपोषणयो:' (जु०उ०) धातु से 'लेट्' प्रत्यय और उसके 'लू' के स्थान में 'थास्' आदेश है । 'थास: से' (३/४/८०) से 'थास्' के स्थान में 'से' आदेश होता है। इस सूत्र से विकल्प 'से' के एकार को ऐकार आदेश नहीं होता है। 'कर्तरि शप' (३ | १/६८) से 'शय्' प्रत्यय, 'जुहोत्यादिभ्यः श्लुः' (२/४/७५) से 'शप्' को श्लु, 'श्लौं' (६ 1१1१०) से 'धा' धातु को द्विर्वचन 'लेटोsडाटौँ' ३।४।९४) से 'अट्' आगम और 'घोर्लोपो लेटि वा' (७/३/७०) से आकार का लोप होता है। इकार- लोप: (४) इतश्च लोपः परस्मैपदेषु । ६७ । प०वि०-इतः ६ ।१ च अव्ययपदम्, लोप: १ । १ परस्मैपदेषु ७ । ३ । अनु० - लस्य, लेट:, वा इति चानुवर्तते । अन्वयः - धातोर्लेटो लस्य परस्मैपदेषु इतश्च वा लोपः । अर्थ:-धातोः परस्य लेट्सम्बन्धिनो लस्य परस्मैपदसंज्ञकेषु आदेशेषु वर्तमानस्य च इकारस्य विकल्पेन लोपो भवति । उदा०-इकारलोपः-जोषिषत् (ऋ० २ । ३५ ।१) । तारिषत् (ऋ० १। २५ ।१२ ) । मन्दिषत् । न च भवति- पताति दिद्युत् (ऋ० ७।२५1१) । उदधिं च्यावयाति ( तै०सं० ३।५।५।२) । आर्यभाषा-अर्थ- (धातोः) धातु से परे (लेट:) लेट्सम्बन्धी (परस्मैपदेषु ) परस्मैपद संज्ञक (लस्य) लादेशों में विद्यमान ( इतः ) इकार का (च) भी (वा) विकल्प से (लोपः ) होता है। उदा०- - संस्कृत भाग में देख लेवें । सिद्धि-जोषिषत् आदि पदों की सिद्धि 'लेटोऽडाटौं ( ३ | ४ |९४) के प्रवचन में देख लेवें । सकार-लोपः (५) स उत्तमस्य । ६८ । - प०वि० स: ६ ।१ उत्तमस्य ६ । १ । अनु० - लस्य, लेट:, वा, लोप इति चानुवर्तते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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