Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 569
________________ ५५६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् शप्' विकरण प्रत्यय है। लिङ: सलोपोऽनन्त्यस्य' (७।२१७९) से यासुट' के 'स्' का लोप होता है। अतो येय:' (७।२।८०) से 'या' को 'इय्' आदेश, लोपो व्योर्वलि' (६।१।६४) से 'य्' का लोप और आद्गुणः' (६।१।८४) से गुण रूप एकादेश (अ+इ=ए) होता है। (२) यजेयुः । 'यज देवपूजासंगतिकरणदानेषु' (भ्वा०3०) पूर्ववत् । जुस्-आदेशः (११) सिजभ्यस्तविदिभ्यश्च ।१०६ । प०वि०-सिच्-अभ्यस्त-विदिभ्य: ५ ।३ च अव्ययपदम् । स०-सिच् च अभ्यस्तश्च विदिश्च ते-सिजभ्यस्तविदयः, तेभ्य:-सिजभ्यस्तविदिभ्यः (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु०-लस्य, डित्, झे:, जुस् इति चानुवर्तते। अन्वय:-सिजभ्यस्तविदिभ्यश्च धातुभ्यो ङितो लस्य झेर्जुस् । अर्थ:-सिचोऽभ्यस्ताद् विदेश्च धातो: परस्य अपि डित्-सम्बन्धिनो लादेशस्य झि-प्रत्ययस्य स्थाने जुस्-आदेशो भवति। उदा०-(सिच:) ते अकार्षुः । ते अहार्षुः । (अभ्यस्तात्) ते अबिभयुः । ते अजिह्वयुः । (विदे:) ते अविदुः । आर्यभाषा-अर्थ-(सिजभ्यरतविदिभ्य:) सिच् प्रत्यय, अभ्यस्त और विद् (धातो:) धातु से परे (च) भी (डित:) डित् लकार सम्बन्धी (लस्य) लादेश के (झे:) झि-प्रत्यय के स्थान में (जुस्) जुस् आदेश होता है। उदा०-(सिच) ते अकार्षः। उन्होंने किया। ते अहार्षः। उन्होंने हरण किया। (अभ्यस्त) ते अबिभयुः । वे भयभीत हुये। ते अजिहयुः। वे लज्जित हुये। (विद्) ते अविदुः । उन्होंने जाना। सिद्धि- (१) अकार्षः। कृ+लुङ्। अट्+कृ+च्लि+ल। अ+कृ+सिच्+झि । अ+का+ष्+उस् । अ+कृ+स्+जुस् । अकार्षुः । यहां कृ' धातु से परे 'लुङ् (३।२।११०) से लुङ्' प्रत्यय पूर्ववत् 'अट्' आगम, च्लि लुङि' (३।१।४३) से च्लि' प्रत्यय और च्ले: सिच्' (३।११४४) से च्लि' के स्थान में सिच्' आदेश है। सिच्' से परे 'लुङ्' प्रत्यय के लादेश 'झि' प्रत्यय के स्थान में इस सूत्र से 'जुस्' आदेश होता है। सिचिवृद्धि: परस्मैपदेषु (७।२।१) से 'कृ' धातु को वृद्धि और 'आदेशप्रत्यययो:' (८।३।५९) से षत्व होता है। ऐसे ही हृ' धातु से-अहार्युः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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