Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 571
________________ ५५८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-(१) दा+लुङ्। अट्+दा+च्लि+ल। अ+दा+सिच्+झि। अ+दा+o+जुस् । अ+दा+उस् । अ+द+उस् । अदुः। यहां 'डुदाञ दाने (जु०उ०) धातु से 'लुङ्' (३।२।११०) से 'लुङ्' प्रत्यय, पूर्ववत् 'अट्' आगम, 'च्लि लुङि' (३।१।४३) से चिल' प्रत्यय और च्ले सिच्' (३।१।४४) से 'च्लि' के स्थान में सिच्’ आदेश होता है। 'गातिस्थाघु०' (२।४।७७) से सिच् का लुक् होने पर इस सूत्र से आकारान्त 'दा' धातु से लादेश झि' प्रत्यय के स्थान में 'जुस्' आदेश होता है। 'उस्यपदान्तात्' (६।१।९६) से 'दा' धातु के 'आ' को पररूप एकादेश (उ) होता है। (२) अधुः । डुधाञ् धारणपोषणयोः' (जु०उ०) पूर्ववत् । (३) अस्थुः । छा गतिनिवृत्तौ' (भ्वा०प०) पूर्ववत् । शाकटायनमतम् (१३) लङ: शाकटायनस्यैव।१११। प०वि०-लङ: ६।१ शाकटायनस्य ६१ एव अव्ययपदम् । अनु०-लस्य, झे:, जुस्, आत् इति चानुवर्तते। अन्वय:-आतो धातोर्लङो लस्य झेर्जुस्, शाकटायनस्यैव। अर्थ:-आकारान्ताद् धातोः परस्य लङ्सम्बन्धिनो लादेशस्य झि-प्रत्ययस्य स्थाने जुस् आदेशो भवति, शाकटायनस्यैवाचार्यस्य मतेन । उदा०-ते अयुः । ते अवुः । पाणिनिमते-अयान्। अवान्। आर्यभाषा-अर्थ-(आत:) आकारान्त (धातो:) धातु से परे (लङः) लड्सम्बन्धी (लस्य) लादेश (झे:) झि-प्रत्यय के स्थान में (जुस्) जुस् आदेश होता है (शाकटायनस्य) शाकटायन आचार्य के (एव) ही मत में। .. उदा०-ते अयुः । वे गये/पहुंचे। ते अवुः । वे पवन से बुझ गये। पाणिनि के मत में-अयान् । अवान् । अर्थ पूर्ववत् है। सिद्धि-(१) अयुः । या+लङ् । अट्+या+शप्+झि। अ+या+o+जुस् । अ+या+उस्। अयुः । यहां 'या प्रापणे' (अदा०प०) धातु से अनद्यते लङ्' (३।२।१११) से 'लङ्' प्रत्यय, पूर्ववत् अट्' आगम, कर्तरि शप' (३।१।६८) से 'शप्' प्रत्यय, 'अदिप्रभृतिभ्यः शप:' (२।४।७२) से 'शप्' का लुक है। लङ्' प्रत्यय के लादेश 'झि' प्रत्यय के स्थान में इस सूत्र से शाकटायन आचार्य के मत में 'जुस्' आदेश होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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